Posts

Showing posts from August, 2021

द्वंद्व

राजनीतिक द्वंद्व था जारी आए एक से एक खिलाड़ी सच्चाई का तब ओढ़े चोला बोलें, मुख से उगलें शोला जनता में भी आया जोश भीड़ बढ़ी, बढ़ा आक्रोश लगे फिर नारे, आवाज़ उठी माहौल में आई थी गर्मी हुए इक्कठे, लोग बढ़े जो आए सामने, टूट पड़े दिखा न भड़काने वाला चोर चला गया था बोल के बोल शहर था शमशान बना बस्तियाँ थी उजड़ गईं शांति थी रहती फैली जहाँ किलकारी वेदना में बदल गई विश्वास का धागा टूट गया जो अपना था वो छूट गया नज़रों में अब संदेह बसा अपनापन जो था रूठ गया क्या पाया, बस खोना हीं था तब जीवन में रोना हीं था जो रहते साथ, थी बात अलग जीवन जीने की चाह अलग

आज़ादी

प्रयत्न कई संघर्ष कई कितनों ने दी कुर्बानी गुमनाम कई अंजान कई चंद लोगों की न कहानी पन्नों से इतिहास के विलीन हुए अपनों नें क़ीमत जानीं न जब पढ़ा न उनके बारे में पीढ़ी फिर जानेगी क्या आज़ादी माला ऐसी की कई मोती हैं धागे में न भूलना उनको जो चल गए बसे बस यादों में

त्रिशूल पर काशी

बम महादेव भोलेनाथ काशी से रिश्ता क्या क्यों टिकाया त्रिशूल पर कहिए इसका कारण क्या  मैं पालक रक्षक काशी का अभयदान वरदान यहाँ अखंड वास है काशी मेरा पवित्रता की करता रक्षा मुक्ति का मैं मंत्र भी फुंकू प्रलयकाल त्रिशूल पर धारूँ सृष्टि की ये आदि स्थली हर संकट से इसे उबारुं

गंगा घाट

माँ गंगा के पश्चिम तट पर अनुपम शहर बनारस अस्सी से राजघाट तक घाटों का अनुपम रस लगता जैसे गोद समेटे संग बैठी गंगा माता दृश्य अतुल्य सुंदरता मोहक कितना मन को भाता यूँ लगता अनंत बसा कई वर्षों की ये तपस्या जैसे धागा मोती का साथ माला ऐसा बनारस के घाट मंदिरों की कतार लगी सीढ़ियों का अंबार कण कण में भोले बसते अलग हीं ये संसार  

रात्रि गंगा

अविरल बहती गंगा मैया लगी किनारे निहारे नैया रौशनी में नहाते जल धुन में अपनें चलें कलकल रात्रि पहर मगन है धरा शांतचित्त है पड़ा किनारा वेग तेज़ और मध्यम कितना मनोरम यह भी क्षण चँद्रमा की छवि मनोहर बहें निहारते मेघपुष्प रात में सुंदरता गंगा की अद्वितीय अनुपम अलौकिक

नीरज

न कभी धीरज खोने का चाह हो "नीरज" होने का मेहनत और प्रयत्न के पथ पर ठान मन में और बढ़ा चल बुलंदियाँ वो तेरी है पाने में क्या देरी है रख विश्वास मन में अपनी आशाओं की फेरी है आग है तुझमें जान ले स्वयं को आज पहचान ले कदम बढ़ा अब आगे चल आएगा तेरा भी पल

टोपी

वस्तु निराली है टोपी माना थोड़ी है छोटी जीवन का रंग है समझाती मायने कई है बतलाती इसकी टोपी उसके सर कई लोगों का काम यहीं टोपी पहनाना नियत सी बिन इसके आराम नहीं टोपी से ढँक लेना पहचान अपनीं अपनें हाँथ टोपी उछालने से भला कुछ मिलेगा किसी को क्या

भारत की बात निराली

भारत की बात निराली एक सजी हुई फुलवारी हर रंग के पुष्प यहाँ महकता हुआ उद्यान हिम से सागर तक मरुस्थल से घने वन जहाँ ऋतुएं सारी आतीं चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, श्रावण कई बोली कई भाषा वेशभूषा संस्कृति सभ्यता रहन सहन मनोहर जहाँ का वातावरण साकार जहाँ सबका जीवन

बारिश

दूर ऊपर आकाश में बूँदों का इकठ्ठे होना बादलों से हो स्वतंत्र स्वयं से स्वछंद घूमना धरती माँ की गोद में लालसा आने की इतनी ही तो सोच होती  बस बारिश की सफ़र वो आसमान से पृथ्वी का हरियाली से भर जाती सूखी धरा लबालब नदियाँ तालाब और नहरें बारिश जब धरती पर  आ कर ठहरे  

रात

घनी गहरी काली शांत सुकून विराम स्थिर सचल मतवाली बड़ी होती रात थकान का पड़ाव निश्छल कहती थोड़ा थम जाओ राह कठिन विश्राम पाओ गोद में रख पुचकारे दुलारे प्रेम भाव से रहे निहारे रात मार्मिक होती माँ सी स्वयं ही एक लोरी रात दिन के सारे उलझनों को पल भर में सुलझाती रात

सच्चाई

थी थोड़ी सहमी थी थोड़ी घबराई बातों में था विश्वास नाम बताया सच्चाई बोली, मैं आज भी हूँ भावनाओं में, सोच में मुझपर चलना कठिन माना भविष्य पर संवारुं मैं मैं अनंत अपार जगत में मुझमें हीं है गहराई जिसके संग रहती हूँ मै ज़िंदगी उसनें हसीन बिताई

शासक-सैनिक

शासक संधि हैं करते सैनिक हैं रक्त बहाते संधि तब क्यों न होती जब न शस्त्र उठाए जाते सैनिक का पूर्ण जीवन तो शासक का बंधक सा हीं शासक भला दर्द क्या जाने सैनिक तो बेबाक आज्ञा माने बस सीमा पर डटना जानें और सेवा को धर्म हैं मानें होती क्या बातें कदाचित इन बातों से न चिंतित