रात

घनी गहरी काली शांत

सुकून विराम स्थिर सचल

मतवाली बड़ी होती रात

थकान का पड़ाव निश्छल


कहती थोड़ा थम जाओ

राह कठिन विश्राम पाओ

गोद में रख पुचकारे दुलारे

प्रेम भाव से रहे निहारे


रात मार्मिक होती माँ सी

स्वयं ही एक लोरी रात

दिन के सारे उलझनों को

पल भर में सुलझाती रात


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