रात्रि गंगा

अविरल बहती गंगा मैया

लगी किनारे निहारे नैया

रौशनी में नहाते जल

धुन में अपनें चलें कलकल


रात्रि पहर मगन है धरा

शांतचित्त है पड़ा किनारा

वेग तेज़ और मध्यम

कितना मनोरम यह भी क्षण


चँद्रमा की छवि मनोहर

बहें निहारते मेघपुष्प

रात में सुंदरता गंगा की

अद्वितीय अनुपम अलौकिक


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