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Showing posts from October, 2020

प्रेम

प्रेम NAVNEET ।। प्रेम  ।। भावनाओं का उदगार आत्मा का विस्तार न केवल पाने की इच्छा आत्मीयता का संचार प्रेम मूल तत्व यह सृष्टि का निस्वार्थ भाव से भरा हुआ समर्पण स्नेह ममतामयी पूर्णता पवित्र अर्थों में ही अदम्य अलौकिक अनुभूति मानवता की प्रस्तुति प्रेम समर्पण अन्तर्मन का जीवन की पूर्णता है प्रेम

शरद पूर्णिमा

शरद पूर्णिमा NAVNEET ।। शरद पूर्णिमा  ।। आश्विन मास पूर्णिमा तिथि आगमन शरद ऋतू का सोलह कला पूर्ण चंद्र दिवस श्रीहरि पूजन का माँ लक्ष्मी का जन्मदिन शशि वसुधा निकटतम इस दिन सुधाधर से बरसता अमृत प्रसाद में है बनता खीर सुहाना दिखता शशधर रूप सुशोभित करती कौमुदी चेतना आरोग्‍य नवीनता दायक होती शरद पूर्णिमा तिथि - नवनीत  

समृद्ध अपना देश हो

समृद्ध अपना देश हो NAVNEET ।। समृद्ध अपना देश हो  ।। सुसुप्त क्यों हो जाग उठो उठो कि अपना भाग्य लिखो बदल दो राह राष्ट्र की दिखा दो इति साथ की परिश्रम के जोर पर नई कहानी गढ़नी है नए उमंग से हमें शीर्षस्थता नई चढ़नी है  कठिनाइयों को रख अलग विश्वास से हों अग्रणी विश्रंभ हो स्वयं पर बस योग्यता की न कोई कमी गौरवान्वित इतिहास है वर्तमान को आभास है कुछ क्यों न उससे सीखकर आगे बढ़ें प्रतीत कर न द्वेष हो न क्लेश हो हो साथ बस विवेक हो हर प्राणी हो बस अपना ही हर कोई हीं विशेष हो बहे जो धार प्रेम की आपस के कुशलक्षेम की हो साथ साथी हर कोई समृद्ध अपना देश हो - नवनीत  

सिखाएगा कोई क्या

सिखाएगा कोई क्या NAVNEET ।।  सिखाएगा कोई क्या ।। मिलता क्या उपहास से धर्म प्रथा के परिहास से दर्शाती आपकी मानसिकता निर्बलता है यह, क्षीर्णता हाँ पूजते हम गाय को गौ मूत्र का उपयोग भी हाँ मानते माता उन्हें लीपते गोबर से आँगन भी हम भक्त हैं भगवान के ये भक्ति क्यों है चुभती इस शब्द से घृणा है क्यों चेष्टा क्यों अर्थ बदलने की हाँ राष्ट्र से अपने प्रेम है वसुधैव कुटुंबकम अपनी देन है सहनशीलता पहचान है धर्मनिरपेक्षता सदा से शान है ये धरती है श्री राम की गौतम बुद्ध गुरु नानक जी तीर्थंकर महावीर की न जाने कितने पीर की सिखाएगा कोई क्या उन्हें सिखाया जिसने विश्व को घृणा धरी रह जाएगी पहचानिए भूतकाल भविष्य को - नवनीत  

महागौरी

महागौरी NAVNEET ।।  महागौरी ।। रूप भयानक बिखरे बाल रक्तबीज को दिया था मार उत्पन्न हुए कई रक्तबीज उन रक्तों से हो कर निर्भीक तब "कालरात्रि" अवतार लिया रक्त समस्त मुख में भर लिया विनाशक अंधकारमय स्थितियों की माँ रक्षा काल से करनें वाली त्रिनेत्र अग्निमुख देवी चतुर्भुज गर्धभ सवारी शुभंकरी कहलाती माँ समस्त सिद्धियों से मिलवाती माँ - नवनीत  

कालरात्रि

कालरात्रि NAVNEET ।।  कालरात्रि ।। रूप भयानक बिखरे बाल रक्तबीज को दिया था मार उत्पन्न हुए कई रक्तबीज उन रक्तों से हो कर निर्भीक तब "कालरात्रि" अवतार लिया रक्त समस्त मुख में भर लिया विनाशक अंधकारमय स्थितियों की माँ रक्षा काल से करनें वाली त्रिनेत्र अग्निमुख देवी चतुर्भुज गर्धभ सवारी शुभंकरी कहलाती माँ समस्त सिद्धियों से मिलवाती माँ - नवनीत  

कात्यायनी

कात्यायनी NAVNEET ।।  कात्यायनी ।। महर्षि कात्यायन की घोर तपस्या प्रसन्न, सुता बन आई माता महिषासुर शुम्भ निशुंभ मारा समस्त देवताओं को उद्धारा चार भुजाएं वाहन सिंह ब्रजमंडल अधिष्ठात्री देवी "कात्यायनी" माता कहलाईं अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष की देवी अमोघ फलदायिनी हैं माता कृपा से कार्य पूर्ण हो जाता भव्य दिव्य स्वर्ण सी है काया माता की है अलग ही माया - नवनीत  

स्कंदमाता

स्कंदमाता NAVNEET ।।  स्कंदमाता ।। सीखातीं जीवन देवासुर संग्राम पूजें इनको पूर्ण हों काम पद्मासना विद्यावाहिनी देवी सूर्यमंडल अधिष्ठात्री देवी स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता चतुर्भुज वाहन सिंह "स्कंदमाता" शुभ्र वर्ण कमल पुष्प विराजित दुःखहरन माँ सुखदाता शांति समृद्धि माँ लातीं करतीं मोक्ष मार्ग सहज  इच्छाओं की पूर्ति करतीं माहेश्वरी गौरी को पूजें जब - नवनीत  

धुप

धुप NAVNEET ।।  धुप ।। लालिमा संग सुबह आती धुप नभ पर जब छाती धुप प्रातःकाल शीतलता से पृथ्वी को नहलाती धुप धुप किरण आशा की लाती रात का अंधकार हर जाती मन में एक विश्वास जगाती निद्रा आलस्य दूर भगाती घोंसले से चहचहाती चिड़ियाँ भोर हुआ बतलाती चिड़ियाँ हल कंधे किसान रख लेता नींद से उठ जाती दुनियाँ - नवनीत  

कूष्‍मांडा

कूष्‍मांडा NAVNEET ।।  कूष्‍मांडा ।। आदिस्वरूपा आदिशक्ति  अष्टभुजा सिंह सवारी  मंद हंसी से जिस माँ नें रचना की ब्रह्माण्ड की  प्रिय कुम्हड़े की बलि कहलाईं तब "कूष्‍मांडा" वास जिनका सूर्यलोक  कष्टों विपदाओं की मुक्ता प्राप्ति परम पद की देती माँ की पूजा है  अंधकार में विश्व हो जब माँ बिन न कोई दूजा है  - नवनीत  

चंद्रघंटा

चंद्रघंटा NAVNEET ।।  चंद्रघंटा ।। सिंह वाहन दस हस्त प्रत्येक में भिन्न शस्त्र मुद्रा ज्यों युद्ध में सन्नद्ध सौम्य रूप स्वर्ण सा उज्जवल असुरों के विनाश हेतु  प्रकट हुई थी देवी माँ  सुहागन अवतार माँ पार्वती का  "चंद्रघंटा" स्वरूप में अवतरित माँ  अर्धचंद्र विराजमान माथे पर घंटे सा जिसका स्वरुप  बाधाएँ विनष्ट करतीं  अहंकार नष्ट करता यह रूप  पराक्रमी निर्भय उपासक  वैभव सौभाग्य की प्राप्ति  धर्मरक्षा अंधकार मिटाने  हुई है इनकी उत्पत्ति  - नवनीत  

ब्रह्मचारिणी

ब्रह्मचारिणी NAVNEET ।।  ब्रह्मचारिणी ।। श्वेत वस्त्र में तप चारिणी दाहिनी हाँथ जपमाला बाएँ में कमंडल लेकर  हज़ारों वर्ष तप कर डाला पाने को शिव पति रूप में  फल पत्तियां खा तपस्या की  ज्योतिर्मय भव्य रूप में  तपश्चारिणी "ब्रह्मचारिणी" निराहार निर्जल रह कर फिर अपर्णा नाम धारण किया  चंद्रमौलि शिव को तब  पति रूप में प्राप्त किया   संयम सदाचार त्याग वैराग्य  की वृद्धि माँ हैं करती हैं  कर लें इनकी उपासना  माँ हर कष्टों को हरती हैं  - नवनीत  

शैलपुत्री

शैलपुत्री NAVNEET ।।  शैलपुत्री ।। प्रथम दुर्गा हैमवती माँ उमा वृषारूढ़ा वृषभ सवारी दाहिनी हाथ त्रिशूल, शत्रुनाशक बाएं हाथ कमल, ज्ञान शांति प्रतिकी  पार्वती माँ, शिव अर्द्धांगिनी स्थिरता,सुख, खुशहाली दात्री शैलोत्पत्ति अतः शैल माँ भक्तों पर कृपा बरसाती सती रूप में यज्ञ कुंड में प्राण अपने त्याग दिए पुनर्जन्म पर्वतराज हिमालय सुता "शैलपुत्री" बन तब जन्म लिया मूलाचार चक्र जाग्रत माँ पूजा प्राप्ति सुख सिद्धि  चंद्र दोष से मुक्ति देतीं वास काशी नगरी वाराणसी - नवनीत  

तराजू सा संतुलन रखें

तराजू सा संतुलन रखें NAVNEET ।।  तराजू सा संतुलन रखें   ।। भावनाओं को जब समेटें तराजू सा संतुलन रखें भार एक पक्ष प्रचुर हो तो समाज संतुलित रहता नहीं अनिवार्य नहीं हर रचना में बातें हों बस धर्म की कर्म संबंधी ही संदेश दें एक अनुकूल परिवेश दें कार्यसूची अधिप्रचार अपने तक सीमित रखें समुदाय को जब संदेश दें बस एकाकी संक्षेप दें - नवनीत  

पर्दा

  पर्दा NAVNEET ।।  पर्दा  ।। मासूमियत का उसने पर्दा हटा दिया नकाब से ढँका था असलियत दिखा दिया वो आए पास मेरे ले हमसफ़र का वादा राहों में साथ छोड़ा ऐसा सिला दिया वो पर्दा हट गया तो सच्चाई दिख गई जो मन में वो रखे थे हर बात दिख गई पर्दे का हटना फिर भी सही मुकाम था थी ज़िन्दगी भतेरी सीखने का काम था - नवनीत  

क्यों घृणा सीमा लांघ गई

क्यों घृणा सीमा लांघ गई NAVNEET ।।  क्यों घृणा सीमा लांघ गई  ।। सभी का जीवन मायने रखता हर जंतु यहाँ महत्वपूर्ण चंद लोगों के जीवन हेतु क्यों बहाया जाता खून क्यों घृणा सीमा लांघ गई विरक्ति इस भाँति हुई बँट गई क्यों सबकी सोच अलग थलग हैं सारे लोग क्यों सोच ने बंधन तोड़ी है सीमित क्यों मन की भावना क्यों हर पीड़ित मानव हेतु रहती न एक सी कामना क्यों न्याय बंटा मन के अंदर क्या कारण ऐसे विभेदहीन दुर्भावना ने क्यों किया है घर क्यों हो गई विचारें इतर क्या ढूंढते इसमें प्रयोजन क्या बना नया ये नियम चीज़ें सीमित क्या हो गईं इंसानियत क्या खो गईं - नवनीत  

बदल गई सोंच

बदल गई सोंच NAVNEET ।।  बदल गई सोंच   ।। देखो कुछ गिद्ध निकले हैं नोंच नोंच सब खाने को मानवता को भूल बैठे साम्राज्य अपना बनानें को हर बात की बात अलग हुई हर सोंच की सोंच अलग हुई विरोध भी है कार्यसूची सी सिद्धांता स्वरुप बस मतलब सा दुर्घटनाओं पर भी राजनीती हो गई कैसी प्रवृति नारी का सम्मान गया हर त्रासदी है अब बँट चुकी - नवनीत