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Showing posts from August, 2020

मोर

मोर NAVNEET ।।  मोर   ।। रंग बिरंगे पंख मनमोहक कितनी सुन्दर काया वन की शोभा होता मोर सबके मन को भाता नाचता जब पंख फैलाए संग ह्रदय ले जाता श्री कृष्ण के मुकुट की शोभा कार्तिकेय का वाहन कलगी बढाती सर की शोभा देख हर्षित होता मन अत्यधिक रमणीय मयूर विहंग राष्ट्रपक्षी भारत का अंग - नवनीत

तब देश में आए थे मोदी

तब देश में आए थे मोदी NAVNEET ।।  तब देश में आए थे मोदी   ।। वातावरण था उदासी का नैराश्य लगा सर्वव्यापी था जब राष्ट्र ने आशा खो दी थी तब वक़्त आया चुनाव का आशाएं टिकी जाकर उनपर तब ले आया था देश चुनकर जब बदलाव की सबने सोची थी तब देश में आए थे मोदी व्यक्तित्व ने था मोहित किया एक आंधी सी तब थी चली प्रजातंत्र ने सुशोभित किया और देश में आए थे मोदी माहौल ऐसा बन पड़ा अपेक्षा ऐसी जग गई बदलाव आया तब देश में  ऐसी, किसी ने सोची न थी - नवनीत

कई युगों की सभ्यता

  कई   युगों   की   सभ्यता NAVNEET ।।  कई   युगों   की   सभ्यता   ।। कई युगों की सभ्यता सदियों की ये संस्कृति आज भी है वैसी ही जैसे सहस्त्र वर्ष पहले थी   कईयों ने कई प्रयत्न किए कितनों ने कितनी चेष्टा की जो भाव था , वहीँ रहा जो सोच थी , वहीँ रही     न द्वेष को मिली जगह न घृणा घर कर पाई भारत भूमि सदा रही इंसानियत की जननी सी   आए कितने आक्रमणकारी कितनों नें कई संहार किए खुनों से सना इतिहास रहा हर वक़्त पर हम खड़े हुए   बच्चों नें सदा ही माँ समझा अपनी इस पावन धरती को कोई हिला सका डिगा सका वंदे मातरम सा उद्घोष   यहाँ धरती पावन , नदियाँ पावन पावन पर्वत हर मूरत है आया हो कोई कहीं से भी अपनाया , पाया यहाँ घर है   ये देश की अपनी परिभाषा कोई इसको क्या बिगाड़ेगा हर पत्थर फूल बन जाएगा कोई कितना पत्थर मारेगा - नवनीत

एक पलना है ये देश

एक पलना है ये देश NAVNEET ।।  एक पलना है ये देश  ।। एक पलना है ये देश चाहे हो जैसा भी भेष चाहे जैसे हों विचार चाहे प्रेम हो या क्लेश ये धरती सबको अपनाती है सबपर प्यार लुटाती है ये इस धरा का अपनापन फिर क्यों बनें इसके दुश्मन क्या जहाँ आपने जन्म लिया कि जिसने आपको अन्न दिया क्या आग वहाँ लगाएँगें क्या उस धरती को जलाएँगें क्यों घृणा घर कर गई इतनी न मूल्य रहा किसी वस्तु का न आदर ही इस देश का न सम्मान इस परिवेश का - नवनीत

कुछ दर्द

कुछ दर्द सच आवश्यक हैं कुछ ज़ख्म कुछ सिखाते हैं कुछ कहानियाँ कुछ कविताएं बस यूँ ही तो नहीं लिखी जाती कुछ तो शायद अंश हैं उनमें जो हमें कुछ बतलाते हैं कुछ सीख जीवन की कुछ अनुभव जीने का कुछ लोगों को समझना कुछ अपनों को पहचानना दर्द भी सिखाता है जीने की एक कला जीवन में दर्द हो जो मन देता है सलाह

आज़ादी क्या है

आज़ादी क्या है NAVNEET ।।  आज़ादी क्या है  ।। मन पंछी सा जब है उड़ता खुले में विचरण है करता कोई बंधन जब मन में न रहे हाँ इसी को कहते आज़ादी न सोच पर कोई बाधा हो न कर्म में कोई विघ्न जो कुछ करें स्वछंद करें हाँ ऐसी होती आज़ादी जब पूरे हों देखे सपने जब ख़ुश हों आप आपके अपने जब समाज में सब एक हों हाँ तब ही है आज़ादी - नवनीत

गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी

गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी NAVNEET ।।  गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी   ।। कई स्वतंत्रता सेनानी तो गुमनाम हैं किताबों में न जिनका नाम है लाठियाँ खाई गोलियाँ खाई पर पढ़ाते न हमको उनकी दास्तान है वह संग्राम केवल नेतृत्व नहीं था केवल कुछ लोगों का कृत्य नहीं था हर कोई था शामिल उसमें कइयों का घर उजड़ा था हमें कहते चंद लोगों की देन है न इससे बड़ा कोई वहम है - नवनीत

राष्ट्रीय एकात्मता

राष्ट्रीय एकात्मता NAVNEET ।।  राष्ट्रीय एकात्मता  ।। सहस्त्र वर्षों का अनुभव लेकर बना ये अपना देश है सभ्यता संस्कृति वर्षों पुरानी युगों का ये संदेश है शरण दिया हर एक को कोई हो कैसा भी हो वसुधैव कुटुंबकम भाव रहा है अपनाया है हर किसी को मिट्टी में रहा प्रेम भाव वातावरण अनुकूल रहा हर सोच का मानव यहाँ मिलकर रहा एकत्र रहा विभिन्न तरह की बोलियाँ भाषाएं हैं अलग अलग खान पान रहन सहन भले हीं हो पृथक एक ड़ोर बाँधे है सबको जो डोर है विश्वास का सदियों के अपनेपन का वर्षों के साथ का यहाँ प्रेम भाव बना रहे सबका यहीं प्रयत्न हो सब सुख दुःख के साथी हों चाहे जैसा भी वक़्त हो कठिन नही ये राह है गर सोच हो विश्वास हो मुझे चिंता तो आप खड़े आपको असुविधा हो तो हम रहें अपना अपना जो धर्म हो अपना अपना वो कर्म हो न मेरी सोच से आप उलझें न आपकी से हम एक मन हो एक रास्ता एक पड़ाव प्रेम का मन में रहें बस सोच यहीं एक दूसरे के कुशलक्षेम का साथ रहें साथ चलें राष्ट्र का विकास करें संगठन में शक्ति है संगठित हो कर रहें - नवनीत

जन्मास्टमी

जन्मास्टमी NAVNEET ।।  जन्मास्टमी  ।। जन्मदिवस है केशव का माधव का देवकीनंदन का पलने में आज झुलाना तुम  आनंद जीवन का पाना तुम  गोकुल मथुरा का बाल रूप हो कुरुक्षेत्र का व्यस्क रूप श्री कृष्ण सदा ही अलग से धर्म हेतु बस डटे रहे गीता का जिन्होंने ज्ञान दिया बचपन से ही सदा कठिनाइयों का सामना रहा पर धर्म मार्ग पर अडिग रहे इसलिए हमारे पूजनीय - नवनीत

काशी के कण कण में शिव है

  काशी के कण कण में शिव है  NAVNEET ।।  काशी के कण कण में शिव है  ।। शिव काशी हैं, काशी शिव है काशी का हर वासी शिव है घाट शिव है, ठाट शिव है गलियों की आवाज़ शिव है बोली शिव है, गाली शिव है मस्ती की हर डाली शिव है गंगाजल शिव है, गगन थल शिव है वचन शिव घर आँगन शिव है रास्ता शिव है, पड़ाव शिव है मंदिर शिव हर पत्थर शिव है - नवनीत

राम न केवल देवता

राम न केवल देवता  NAVNEET ।।  राम न केवल देवता  ।। शांति के प्रतिक हैं मर्यादा के सटीक हैं राम न केवल देवता भारत के प्रतीक हैं मिला स्थान आज फिर उन्हीं को उनके देश में कैसी विडम्बना है ये विधि का कैसा न्याय है प्रशन्नचित्त हैं आज सब की कार्य जो हुआ संपन्न ये राम की विशेषता रहे सदा हीं आम से भलाई हो समाज की इतना ही तो कर्म था   यहीं उनकी जीवनी यहीं उनका धर्म था की भक्त हम राम के उन्हीं का स्वभाव है सदा रहें हैं प्रेम से किया प्रेम का प्रचार है कहीं का हो कोई भी हो पाया यहाँ स्थान है भारतभूमि सदा रही महानता के पथ पे ही श्री राम कृष्ण गौतम बुद्ध महावीर गुरु नानक जी इस धरती को प्रणाम है यहाँ अनेक धाम हैं - नवनीत

5 अगस्त

5 अगस्त   NAVNEET ।।  5 अगस्त   ।। 2077 विक्रम संवत कृष्ण द्वितीय की तिथि आगमन श्री राम का अयोध्या है सजी संवरी भक्तों के मन में खुशियाँ अकल्पनीय हैं भावनाएं मन भाव विभोर है हो रही चहुँओर प्रार्थनाएँ सतयुग त्रेतायुग की यादें यूँ लगता फिर वापस आईं फिर किसी वनवास से प्रभु राम सीता माँ आईं फिर हनुमान जी सीना चीड़ करवाते दर्शन प्रभु मात का परीक्षा की घडी पूर्ण हुई न क्लेश रखो किसी बात का बस हर्ष में अब मगन रहो रखो अभिलाषा दर्शन की प्रभु राम ही तो सिखाते हैं न द्वेष रखो मन में अपनी - नवनीत