एक पलना है ये देश
एक पलना है ये देश
NAVNEET
।। एक पलना है ये देश ।।
एक पलना है ये देश
चाहे हो जैसा भी भेष
चाहे जैसे हों विचार
चाहे प्रेम हो या क्लेश
ये धरती सबको अपनाती है
सबपर प्यार लुटाती है
ये इस धरा का अपनापन
फिर क्यों बनें इसके दुश्मन
क्या जहाँ आपने जन्म लिया
कि जिसने आपको अन्न दिया
क्या आग वहाँ लगाएँगें
क्या उस धरती को जलाएँगें
क्यों घृणा घर कर गई इतनी
न मूल्य रहा किसी वस्तु का
न आदर ही इस देश का
न सम्मान इस परिवेश का
- नवनीत
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