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Showing posts from January, 2021

भारत के आम लोग

।।  भारत के आम लोग    ।। हम भारत के आम लोग भारत को स्वर्ग बनाएंगे आएंगे कितने दशतगर्दी कदमों तले झुकाएंगे ये देश जान से प्यारा है ये दिल और जान हमारा है हम भारत माँ के बेटे हैं माँ को न कभी रुलाएँगे जब तक तन में है लहू कीमत मिट्टी की चुकाएंगे

चाँद से गुफ्तगू

।।  चाँद से गुफ्तगू   ।। स्वप्न के बीच इच्छाओं को समेटे चाँद से गुफ्तगू की कल रात चाँदनी संग बताई कई बात क्यों है दरार चमकता क्यों सारी रात छुपता बादलों में क्यों अमावस क्यों, क्यों पूनम रात क्यों निहारे धरती को नीला क्यों है गात खुशियाँ गम सारे बयाँ कर गया चाँद उस रात मन अपना हल्का कर गया

सितारों की दुनियाँ

।।  सितारों की दुनियाँ    ।। आसमान के उस पार एक दुनियाँ सितारों की विस्तृत अनंत अपार संग असंख्य सहचर समेटे हुए कई भेद कितनी रहस्यमय होतीं विचरण करें प्रत्यक्ष उन्मुक्तता में दक्ष  न होने का दर्प न खोने का डर न कोई क्लेश रहते सदा मुखर

सिख धर्म

।।  सिख धर्म   ।। साथ दिया विश्वास दिया माँ भारती को सिखों ने सदा गुरुओं का आशीर्वाद रहा इस धरती को आभास रहा न झुके न ही झुकने दिया कितने ही संताप सहे संगठित हुए सामना किया खून पसीने से सींचा देश अफगानों मुगलों का प्रतिकार किया स्वतंत्रता संग्राम में अडिग रहे सेना के बन सम्मानित सैनिक सीमाओं पर डटे हुए

खादी

  ।।  खादी ।। थी राष्ट्र में स्वतंत्रता की आंधी संग्राम चरम पर आया था बहिस्कार हुआ विदेशी वस्त्रों का जब देश में खादी छाया था हर घर में एक ज्वाला सी थी सब संग गाँधी के चल पड़े पहचान बनाई खादी को विदेशी कपडे जल पड़े पहचान रही राष्ट्रीयता की न केवल एक वस्त्र खादी जगा दिया था स्वावलंबन चरखे ने दिलाई आज़ादी

खादी

।।  खादी ।। पहचान स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास मोहनजोदड़ो से चला वस्त्र नहीं विचार है खादी आत्मनिर्भरता स्वरोज़गार है खादी गाँधी जी का साथ रहा स्वदेशी आन्दोलन में अग्रणी खादी की पहचान रही सदैव स्वावलंबन से ही हाँथों से बनता यह वस्त्र सूत चरखे पर कातकर कपास, रेशम, ऊन के बुने गए कपड़े होते गर्मी में ठंड, ठंड में गर्म खादी की पहचान यहीं विरासत भारतीय वस्त्रों का दें खादी का साथ सभी

श्री राम

।।  श्री राम ।। आगे बढ़ो अब ठान लो श्री राम का बस नाम लो धाम अयोध्या नगरी में भव्य मंदिर का निर्माण हो हो आपके योगदान से मन में हरी के नाम से प्रभु राम पहचान राष्ट्र के होंगें स्थापित जन्मभूमि में मन दर्शन को व्याकुल सा होने को समाप्त शुन्य अब पुरुषोत्तम की राह पर चलता रहा सदा देश यह

ख्वाब

  ।। ख्वाब  ।। भूल कर मुझको भला क्या मिलेगा आपको नींद भूल सकती है क्या कहिए कभी किसी ख्वाब को रिश्ता इनका साथ का आपस में विश्वास का एक दूजे के बिना ना होता कोई वास्ता नींद है तो ख्वाब भी होंगे ख्वाब है तो नींद भी नींद और ख्वाब के बिना होती अधूरी जिंदगी

।। माँ ।।

।। माँ ।। माँ एक आस है माँ विश्वास है माँ स्वयं ईश्वर है माँ सबसे खास है सृस्टि की जननी है माँ पालन करने वाली है माँ संतान के हर परिस्थिति में साथ चलने वाली है माँ माँ का प्रेम अतुल्य है इसका न कोई मूल्य है माँ की सेवा में है भक्ति तन मन को देती है शक्ति 

छत ये मिट्टी की

।।  छत ये मिट्टी की    ।। छत ये मिट्टी की सोने नहीं देती बारिश का डर तो हर वक़्त बना रहता निश्चल है ये मन मस्तिष्क मगर फिर भी जाने क्यों मचलता सा होनी से डरता सा एक दिन अपने छत को पक्का मैं बनाऊँगा पर मिट्टी तो फिर भी वो साथ में आएगी

भारत के पुराने मंदिर

।। भारत के पुराने मंदिर   ।। मुंडेश्वरी बृहदेश्वर तुंगनाथ कुंभेश्वर कैलाशनाथ चेन्नाकेशव पंचरत्न दिलवाड़ा विट्ठल ओरछा पुष्कर वेंकटेश्वर कोणार्क मोढ़ेरा लिंगराज विशाला  कलाकृति के प्रतिरूप अद्भुत देख होता हर एक मंत्रमुग्ध शीर्ष ऊँचाइयाँ उत्तम संरचनाएँ अनुपात संरेखण मन मोह जाएँ सुशोभित स्तंभ-दीवार चित्रकला उत्कीर्णन अद्भुत, अद्वितीय वास्तुकला  शिल्पकला के अतुलनीय उदाहरण भारत के कोने कोने में चित्रण भव्य कलात्मक मंदिर अनगिनत मूर्तिकला, मूर्तिविद्या में पारंगत प्रतिमाओ की शैली व्यापक अलंकरण सुन्दर मनमोहक स्थापत्य से भिन्नित हुईं   विंध्य-हिमालय नागर शैली द्रविड़ कृष्णा से कन्याकुमारी विंध्य-कृष्णा बेसर शैली अपनी अपनी सबकी विशेषता राष्ट्र की सांस्‍कृतिक विरासत मंदिर पुराने हैं अति सुंदर कलाकृति के सारे द्योतक

देश हमारा जागा है

।।  देश हमारा जागा है    ।। देश हमारा जागा है  कि चीन यहां से भागा है अब बहुत हो गया इस्तेमाल अब चीनी सामान का बहिष्कार अब नियम बनाया सरकार ने अब जनता का भी कार्य है अब सोच ले अब मान ले  अब दिल में बात यह ठान ले अब चाहे हो जाए कुछ भी अब आए चीन ना घर में अब बात हमारी पक्की है अब जो है देश भक्ति है

कविता

कविताएं भावनाओं सी होतीं शब्दों को पद्यों में पिरोतीं सपनों का यथार्थ रूप कविता अंधकार में धूप क्रांति लाती कविताएं हास्य से मन मोह जाएं गंभीरता से भरे कुछ शब्द सोचने को मनुष्य विवश आहट ये विश्वास सा भूत भविष्य आज का समाज का सटीक चित्रण कविता कामनाओं का उदाहरण

घाट की सीढ़ियों पर....

बैठकर माँ गंगा किनारे शाँत लहरों के बीच घाट की सीढ़ियों पर प्रायः सोचता हूँ मैं क्यों जानी जाती है काशी बात क्या है बनारस में क्यों विशेष है वाराणसी क्या है इसकी चौखट में मन यहाँ होता पवित्र  आभाष साक्षात् शिव का प्रसन्नता का भाव होता अनुभूति होती बैकुंठ सी भक्ति हर ओर है दिखती साधु सन्यासी बसते यहाँ हर हर महादेव शब्द से वातावरण गूँजता हुआ घाटों मंदिरों की अल्पता नहीं घर घर में शिवलिंग रखा वैदिक मन्त्रों से सदा नगर ये प्रतिध्वनित रहा काशी तो स्वयं विश्वास शोध ये जीवन का भावनाओं से परिपूर्ण कण कण है काशी का

सीताराम ब्याह

  सीताराम ब्याह   ।। सीताराम ब्याह  ।। जनकपुरी श्री राम चले विश्वामित्र लक्ष्मण संग स्वयंवर सीता माँ का पिता जनक का हर्षित मन प्रातःकाल उपवन चले विचरण को प्रभु राम सीता थी सहेलियों संग माँ पार्वती पूजन काल उपवन में थे पुष्प खिले वातावरण सुगंधित सा नयन पड़ी एक दूसरे पर मंत्रमुग्ध ह्रदय दोनों का मन ही मन पाने की आस माँ सीता को पूर्ण विश्वास सहजता से तोडा शिव धनुष श्री राम का ऐसा अंकुश  खुला नभ आए देवतागण देनें को आशीर्वाद मिथिला के हर एक जन में खुशियों का उत्साह शुक्ल पक्ष पंचम तिथि हुआ सीताराम ब्याह मिलन है जो युगों का देवों को था आभास