छत ये मिट्टी की


।। छत ये मिट्टी की  ।।

छत ये मिट्टी की सोने नहीं देती बारिश का डर तो हर वक़्त बना रहता निश्चल है ये मन मस्तिष्क मगर फिर भी जाने क्यों मचलता सा होनी से डरता सा एक दिन अपने छत को पक्का मैं बनाऊँगा पर मिट्टी तो फिर भी वो साथ में आएगी

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