खादी
।। खादी।।
थी राष्ट्र में स्वतंत्रता की आंधी
संग्राम चरम पर आया था
बहिस्कार हुआ विदेशी वस्त्रों का
जब देश में खादी छाया था
हर घर में एक ज्वाला सी थी
सब संग गाँधी के चल पड़े
पहचान बनाई खादी को
विदेशी कपडे जल पड़े
पहचान रही राष्ट्रीयता की
न केवल एक वस्त्र खादी
जगा दिया था स्वावलंबन
चरखे ने दिलाई आज़ादी
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