Posts

Showing posts from September, 2022

सिंध में सूर्यास्त

गौरवशाली भूमि सिंध की थी जैसे पहचान हिंद की यश कीर्ति चहुं ओर थी फैली कुदृष्टि परंतु कर गई थी मैली  सनी शोणीत से तब थी धरा हाहाकार नभ तक छाया था एक राष्ट्र द्रोही का कुकर्म था  ले सूर्यास्त सिंध में आया था विशाल सेना ले करने आक्रमण आया सीमा पर विक्षिप्त कासिम परास्त हुआ न थी मिली सफलता बंदरगाह पर शत्रु संग बिता वो दिन बतलाया सैन्यशक्ति संग रणनीति सिंध की गुप्त जो पहचान रही थी जो गोपनीय था किया उजागर हारा था सिंध अपनों के छल पर देवल में कर तब नरसंहार धर्म परिवर्तन संग अत्याचार तीन दिनों शमशान था देवल क्रूरता हीं द्योतक थी केवल निरून, सीसम, सेहवन था टूटा पतन हो रहीं थी एक सभ्यता अपनों का हीं यह एक अघ था विभीषण के आगे राष्ट्र विवश था थे रावेर में तब आए सिंधु नृप दाहिर पराक्रमी योद्धा, अद्वितीय एक वीर भाग्य में परंतु था कुछ और लिखा युद्ध में था मतंग का अंबारी जला भयभीत हुआ गज, रण छोड़ चला संग अपनें विश्वास्यता तोड़ चला बिखर गई थी तब सेना नृप की दाहिर को हुई प्राप्त थी वीरगति आरंभ हुआ तब लूट का तांडव क्या धन वैभव, क्या हीं मानव भारत–सिंध की तब थी पहचान संपन्न समृद्ध था वो नगर मुल्त...

किसानी

कुछ यूं रहता था मौसम की रहती थी फसलों की बहार खुशहाल किसान और खेती खुशियों से पूर्ण घर संसार बरखा हो, गर्मी या की शीत हर मौसम का अपना संगीत लहलहाते फसलों से भरा खेत धरती भी थी गाती मधुर गीत इंसानों के कुछ करतब से यूं करवट बदला मौसम ने मॉनसन का मौसम चला गया बारिश का आता अब भी संदेश यूं पर्यावरण से खेल न कर अब मौसम से तू मेल तो कर क्या होगा सृष्टि का क्या जानें इस खतरे को अब तो पहचानें क्या यहीं भविष्य देंगें बच्चों को क्या सब कुछ उजाड़ देंगें हम क्या केवल आज पर है जीना या उनके लिए कुछ करेंगें हम

नवनीत

मन नवनीत सा नित है रहता छल कपट भयभीत है रहता कोमल स्वभाव कलात्मक काया अनुसरणीय गुण सबको सिखाया सर्वज्ञ कृष्ण परम नियंता कर्म उदार धैर्यवान विजेता साहसिक जीवन सह सद्गुण धारक सामाजिक जीविका के परिचायक सीधा सरल स्वभाव सादगी सुंदर स्वरूप नरपालक हितैषी सत्यवादी प्रतिभावान सुपंडित दक्ष कृतज्ञ धैर्यवान थे नवनीत

हिंदी भाषा का महत्व

  हिंदी भाषा का महत्व   भारत भू को जो जोड़ती राष्ट्र की है जो एक कड़ी हिमालय से महासागर तक साथ भारत को है पिरोती   केवल न भाषा, सूत है हिंदी माँ भारती की सपूत है हिंदी केरल से कश्मीर तक सबको करती सदैव एकजुट है हिंदी   अपनेपन का बोध कराती हिंदी सब के मन को भाती बोली कई संग में लेकर हिंदी सर्वत्र है बोली जाती   पहचान राष्ट्रीय संस्कृति - संस्कार की पहचान स्वतंत्रता के अधिकार की है हिंदी ह्रदय - मस्तिष्क राष्ट्र की संपर्क भाषा, आत्मा हर राज्य की   हिंदी की अपनीं है छटा निराली कई भाषाओँ   के शब्द समाहित न भरी द्वेष से न हीं क्लेश से हिंदी सदा सबको अपनाती

आज़ादी का अमृत महोत्सव

वक़्त भी था ठहर गया असंतोष का वातावरण था जब राष्ट्र की स्वाधीनता हेतु देशभक्तों नें गोलियां खाई थीं   लम्हा बस यादों का छोड़ गए थे सबको आपस में जोड़ गए आँधी ऐसी थी चल पड़ी चिंगारी आग थी बन गई   देन उन वीरों की स्वाधीनता कितनों के बलिदानों से मिला जब शासन है बहरा रहता तोड़ दो शीशे , समय कहता   प्रयत्न कई संघर्ष कई कितनों ने दी बलिदानी अज्ञात कई विख्यात कई अनगिनत लोगों की कहानी   आज़ादी मनका एक ऐसी की कई मुक्ता हैं इसके सूत में न बिसरना कभी उनको जो चले गए बसे बस हैं सुध में   स्वतंत्र हम कारण उनका संघर्ष मनाते आज़ादी का पर्व सहर्ष जिस उत्सव के निमित्त हर उत्सव अपनीं आज़ादी का अमृत महोत्सव

हिंदी भाषा का महत्व

जननी जिसकी पौराणिक देवभाषा संस्कृत सर्वाधिक व्यवस्थित इसकी अक्षरमाला होते नहीं जिसमें गूँगे अक्षर कोई सरल लचीली है रही हिंदी   भाषा   वैज्ञानिक लिपि ध्वन्यात्मक वर्णमाला संपूर्ण भारत की हिंदी संपर्क भाषा ग्रहण किया अन्य वैश्विक भाषाओं को हिंदी राष्ट्र की एक व्यावहारिक भाषा   अनेकों उपभाषाएँ एवं बोलियाँ संग अत्यंत विस्तृत है रहा इसका रूप विशाल शब्दकोष अपवादविहीन नियम हिंदी का है रहा अद्वितीय स्वरुप   माँ भारती का है वैभव हिंदी राष्ट्रीयता की विभव है हिंदी एक धागे में जो पिरोए सबको असंभव का संभव है हिंदी   “ अ ” पनें संग जोड़े औरों को सदा “ आ ” गे सदैव बढ़ती रही हिंदी “ इ ” क्कठे कर इसने कई बोली “ ई ” र्ष्या से परंतु सदा दूर रही   “ उ ” दार चरित इसकी अतुल्य “ ऊ ” र्जा “ ए ” कीकृत परंतु न कदापि “ ऐ ” कपत्य “ ओ ” जस्विता एवं “ औ ” दार्य हैं कारण “ अं ” तःप्रवाह हिंदी सदा बहती रही

थोड़ी है ...

केवल न मिट्टी, प्राण बसते हैं हार मांस वाले, इंसान रहते हैं पर्वतराज हिमालय, तीन ओर सागर फैली है धरा पर, भारत मां का आंचल अहिंसा कभी हमारी, पहचान थोड़ी है लूटना औरों को, अपना काम थोड़ी है अपनापन का पाठ, पढ़ाया सदा सभी को आशीर्वाद है, किसी के श्राप का हिंदुस्तान थोड़ी है पारसी हों या आइरिश, शरण दिया इस भू ने विश्व को किया सुगंधित, इस धरा की खुशबू ने धर्मनिरपेक्षता स्वाभाविक, शालीनता लहू में पीठ पर भोंकना छुरी, अपनी पहचान थोड़ी है दोगे प्रेम अगर तुम, प्रेम हीं पाओगे साथ सदा रहेगा, पास में हीं पाओगे दोगलों, द्रोहियों, नाशियों गांठ लो अब ये पापियों, कुटिलों का ये हिंदुस्तान थोड़ी है

तुम हो ...

अंत तुमसे, आरंभ तुम हो शरीर बस मैं, अंश तुम हो  मन मंदिर, हो देवता तुम कल्पना मैं, आधार तुम हो तुम हो मेरी जीवनशैली प्रसाद तुम, मैं हूं हथेली कर्म का मेरे फल हो तुम कारक तुम समापक तुम हो जीवन की ज्योति है तुमसे राह तुम मैं हूं पथिक बस लक्ष्य की सिद्धि है तुमसे साधन मैं, गति तो तुम हो