हवस
यह गफलत क्यों है यूं शिकायत क्यों है यूं सताना बता भला तुम्हारी आदत क्यों है मन में मेरे आज भी जाने क्यों संशय है तू समझती नहीं मुझे कैसा तुम्हारा हृदय है तुम्हें पाने की जो मैं एक अभिलाषा रखता हूं ये हवस नहीं प्रेम है मेरा तुम्हें अपना समझता हूं सर से पांव तक बस तुम्हें चुमना चहता हूं आंखें बंद कर तुम्हारे जिस्म में डूबना चाहता हुं मेरे लिए वो एक मंदिर पवित्रता जैसे गंगा सी मेरे लिए वस्तु पूजा की जिस्म तुम्हारा, आत्मा तेरी भर कर तुम्हें अपनी बाहों में हर गम तुम्हारे पास से ले लूं जो भी खुशियां मेरे जीवन में आ लिपट जा, तुम्हें सारे दे दूं डूब जाएं एक दूसरे में हम इस कदर, कुछ याद न रहे प्रेम तो तुम्हें भी मुझसे है लब तुम्हारे कहें, ना कहें आत्मा तुम्हारा है आत्मीय मुझको आदतें भी तुम्हारी, है प्रिय मुझको परंतु पाना शरीर, तेरा मेरा लक्ष्य नहीं चाहता हूं तुम्हें, जिस्म की हवस नहीं जिस्म का मिलना एक आधार है तुम तो मुझे सदैव हीं स्वीकार है जिस्म जब एक हो जायेंगें हमारे एक हो जायेंगें, नभ चांद तारे