छल

इंसान नहीं समझता हूं
नहीं मैं मन पढ़ पाता हूं
विश्वास कर लेता सबपर
छल इसलिए हीं पाता हूं

न प्रेम, न हीं खेल समझता हूं
बस दिल का मेल समझता हूं
मैं ऐसा जो हमेशा समझता हूं
बस इसलिए छल पा जाता हूं

प्रयोग किया और त्याग दिया
सबनें मुंह अपना मोड़ दिया
सब कुछ छोड़ा जिसके लिए
उसनें हीं मुझको छोड़ दिया

जाने से पहले मेरे मन में
एक डर का बीज बो गए
कैसा बीता अपना वो पल
पल जिसमें मुझे छोड़ गए

भयानक वो एक सपना था
जो अपना है वो अपना था
कल याद मुझे जब आती है
कांप रूह यह तब जाती है

विश्वास किया, साथ दिया
उसने भी ये आभास दिया
न कोई छल कपट मन में
सहा, न उनको आंच दिया

भावनाओं से वो खेल गए
अच्छा हुआ सब झेल गए
अब शपथ ली ये जीवन में
बसेगा नहीं कोई मेरे मन में

पर यह प्रार्थना है तेरे लिए
जीवन में बस खुशहाली हो
तू राह में अपने पाए प्रगति
हर पल संग में हरियाली हो

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