बदला हुआ शहर

देखा देखा सा लगता है यह शहर
लोग वहीं हैं, मगर पहचानते नहीं
था किया बहुत इन राहों पर सफ़र
उधर जाते थे, अब जाते और कहीं

है बदल गया यहां हर एक मंजर
जहां वृक्ष थे, अब सड़के हैं वहीं
जहां थे चहचहाते पंछी अनगिनत
बस वाहनों की आवाज़ आती रही

वह गलियां, अब गलियां नहीं रही
हर बचपन मकानों में खो गया कहीं
खुले हुए वो मैदान आखिर गए कहां
अब खेलते बच्चे नज़र न आते यहां

कहां गए वो किराने वाले सेठ जी
ये आलीशान मॉल पहले था नहीं
दिखता नहीं वो आम पन्ना वाला
शीतल पेय ने बाज़ार बदल डाला

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