मेरी कहानी

बस इतनी सी है कहानी
किसी और को समर्पित
दूसरों की हीं तो निशानी
यह जीवन मेरा है अर्पित

कदापि न सोचा अपना क्या
न सोचा परहित से होगा क्या
न हुआ कभी ये मन विचलित
न भटका राह से अपनें किंचित

कैसे भी भले रहें हो पल
कर्म सदैव पर मेरे निश्छल
सर्वदा दिया साथ विश्वास
स्वभाव में है नहीं आघात

क्या हुआ नहीं देखा पलट
क्या किया न सोचा सिमट
क्या कहा गया, चिंता नहीं
कुछ सुना भी तो भूल गया

बातें तो हां हृदय में बसती हैं
कुछ पल तो सच में डसती हैं
पर वक्त सा न कोई मरहम है
मिट जाता वक्त से हर रंज है

यह पथ कभी आसान नहीं
कठिनाइयां हैं, विश्राम नहीं
बहुत कुछ सहना पड़ता है
और चुप हीं रहना पड़ता है

कोई होता नहीं समझने को
तत्पर पर हैं कई उलझने को
मन मस्तिष्क रहे शांत नहीं
पर जीवन में रहता भ्रांत नहीं

और पहिया है चलता रहता
मग में वाहक से यह कहता
है राह जटिल तू बढ़ता चल
तू घने वृक्ष का नूतन कोंपल

समाई तुझमें हीं वो पत्ती है
जो सोखती सारी विपत्ति है
तू शुद्ध हवा का है द्योतक
है गीता सा पवित्र पुस्तक

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