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Showing posts from July, 2022

दुनियां

दुनियां एक पल का किस्सा हर शख्स यहां एक हिस्सा कुछ समय जो बितानी लिखनी एक अमर कहानी कर्म कुछ सब ऐसा करें दुनियां के कुछ कष्ट हरे प्रज्वलित आशाओं का दीपक मानवता का एक अंश बनें दुनियां ठहरी बड़ी निराली रुपहली खुशनुमा मतवाली हर रंग के रंग दिखाए हर लोग का मन बहलाए

बारिश की वो बूंदें

आईं कुछ बूंदें बारिश की हम तुम जब मिलने वाले थे आ न सकी तुम पास मेरे ये बारिश है, या की दुश्मन वादा था हमको है मिलना कुछ कहना, कुछ है सुनना बातें कुछ मन की कहनी थीं भावनाओं से भरे समुंदर थे थमनें का उसने न नाम लिया बरस पड़ी और जी भर कर किसी राह में तुम्हें रोक लिया इंतजार हीं बस हम करते रहे वादा था हमको था मिलना कुछ कहना, कुछ था सुनना कुछ बातें मन की कहनी थीं भावनाओं से भरे समुंदर थे आएगा फिर दिन नया सा फिर तुम मिलने आओगी फिर होंगी बातें जी भर कर फिर तुझमें हम खो जाएंगे

दोस्ती

मात भ्रात से हो पृथक सब ज्ञात पर अज्ञात रहा जिसनें दिया साथ सदा सर्वदा मित्रता का मान रखा अजेय था, गौरव था दुर्योधन का विश्वास था अद्वितीय अनुपम युद्ध कलाएं अद्यंत उसका साथ था आदर्श सुह्रद का बन रिश्तों से बड़ा था प्रण बहला सके न श्याम भी डटा रहा दोस्ती पर कर्ण

क्रमश

क्या कहूं मैं, बल भुजाओं का कहां लग रहा, उर में जाकर, छुप पड़ा क्या करूं मैं कुछ अब सूझता नहीं और ये मन, जो कुछ बुझता नहीं कंप क्यों तनु में यूं मेरे पड़ी प्रेम में व्याकुल भला क्या ये पड़ी आत्मा भी गई छोड़कर अकेला काटते न कट रही क्यों ये बेला वक्त भी जैसे तपीस में ठिठुर गया स्मरण कुछ रहता नहीं सब भूल गया मस्तिष्क जैसे शून्य की ओर चला जीवन को मेरे भला हुआ ये क्या सूझता न कुछ, देखूं दसों दिशाएं क्यों नहीं कुछ भी मेरे मन को भाए क्या हुआ क्यों भला समझा नहीं मैं इस प्रकार यूँ राह से भटका नहीं मैं मेरी सारी कामनाएं खो गई मन की सारी भावनाएं सो गई प्रश्न मन में कई पर उत्तर नहीं कौन सा ये वक्त ये कैसी घड़ी नभ में निकला शशांक क्यों अपना लगे दूर चमकते सितारे क्यों स्वप्न सा लगें रात अंधेरी मगर, क्यों रौशनी है चांद भी पूरा नहीं, पर चांदनी है लालिमा सूरज की घेरे क्यों मुझे बादलों में छुप ये कैसी रौशनी है मेघ क्यों उमरें हैं, भला है बात क्या चाहिए किरणों को इनका साथ क्या गरज गरज क्या कह रहे, सूझता नहीं बरस बरस क्या कर रहे, बुझता नहीं जल जो मेरे पास आती हर एक पल छू कर यूं चलीं जाती, क्या कह मगर बागो...

प्रणयपूर्ण संगीत

विस्मय न होता जीवन में जब प्रणय संगीत होता है गीत मधुर होता है संगीत अमर होता है स्वर लय ताल विशेष बनाए यह संगीत जो मन हर्षाए खुशियों का संचार करे और हर्षित जीवन को बनाए प्रणयपूर्ण आरोही संगीत मानव के मन का मीत आत्मिकता का यह दायक आत्मीयता का परिचायक 

क्या अब भी

क्या कहती है आंखें कहां हो तुम खोई क्यों गुम सा है चेहरा क्या सपने संजोई क्या मैं अब भी आता हूं बता सपनों में तेरे क्या यादें मेरी अब भी तुमको रहती है घेरे क्या अब भी तुम खिड़की से मुझे खोजती हो क्या बैठ अकेले में अब भी मुझे सोचती हो क्या होंठों पर नाम मेरा तेरे अब भी आता है क्या मेरा साथ तुझको भला अब भी भाता है मुझे याद कर अब भी क्या श्रृंगार करती हो पहले भी चाहती थी क्या अब भी मरती हो मेरा हाल क्या है क्या तुमको पता है तेरा हाल मुझको नजर आ रहा है

तुम हो हमारी

पलकों पे आंसू छुपाकर रखे हैं मन में कुछ सपनेंं दबाकर रखे हैं रहने दो आंसुओं को आंखों के भीतर सपनें हों सच, बस कुछ ऐसा करो तुम तुम्हें चाहता हूं मैं, पर कह न पाऊं तुम बिन यूं लगता, की अब रह न पाऊं मेरी सोच थोड़ी, तेरी सोच से इतर मुझे याद आते हो, बस तुम हीं पल पल जो सपनें संजोए, जो आंसु दबाए कहीं टूटे न वो, कहीं बह न जाएं संभालो तुम इनको, ये हठ है हमारी की हम हैं तुम्हारे, और तुम हो हमारी ये विश्वास है कि तुम्हें पाऊंगा मैं तुझे छोड़ अब न कहीं जाऊंगा मैं मेरी आस हो, मेरी विश्वास हो तुम मेरे सपने सच होने की कगार पर हैं

भाग्य के आगे

इंसान कभी भी भाग्य के आगे रहता मौन नहीं है क्षमता देख अपनीं प्रयत्न करता कौन नहीं है  हार जीत हर्ष विषाद तो चलता हीं रहता है ऐसा बनो मनुष्य नहीं जो हार बैठ जाता है जीवन मार्ग एक कठिन परंतु चलते हीं जाना है परिस्थिति जैसी भी हो पर आगे कदम बढ़ाना है अडिग मार्ग पर चलना है परिचायक स्वयं का बनना है राह के काँटों को पुष्प बनाकर हँसते हुए निकलना है 

जीवन राह

आंखों में पत्ते थे पत्तों पर बूंदें थीं पलकों पर ओस बिछी पुतलियां भी गीली थीं मन थोड़ा व्याकुल सा चेहरा था बुझा हुआ उदासी सी छाई थी पीड़ित क्यों चेतना थी पल सुख का आता है संग दुःख भी लाता है ज्यों दो पहलू सिक्के के ऐसा ही जीवन ये बस चलते जाना है रास्तों को बनाना है पड़ाव तो आएगा हीं हार न मानना है