भाग्य के आगे
इंसान कभी भी भाग्य के आगे
रहता मौन नहीं है
क्षमता देख अपनीं प्रयत्न
करता कौन नहीं है
हार जीत हर्ष विषाद तो
चलता हीं रहता है
ऐसा बनो मनुष्य नहीं जो
हार बैठ जाता है
जीवन मार्ग एक कठिन परंतु
चलते हीं जाना है
परिस्थिति जैसी भी हो पर
आगे कदम बढ़ाना है
अडिग मार्ग पर चलना है
परिचायक स्वयं का बनना है
राह के काँटों को पुष्प बनाकर
हँसते हुए निकलना है
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