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Showing posts from April, 2023

जो जलते हैं, उन्हें जलने दो

कदम बढ़ा आगे को चल विरोधियों को कर अचल प्रगति से तेरी जलते जो गिराने तुम्हें हैं चलते जो जीवन में उनके निराशा है बढ़ने की तुझमें आशा है बस राह में वो तेरे रोड़े हैं नासिका संग भौं मरोड़े हैं सूख तेरा उन्हें पसंद नहीं स्वयं हेतु चाक चौबंद नहीं अपनें अंदर क्या वे झांकेंगे विद्वेषपूर्ण उनका जीवन है मुस्कान तेरे मुख पर जो कष्टमय उनका जीवन हो नयन में तेरी जो चमक रहे प्रभा की उनको भनक रहे तू बढ़ता जा बस आगे को राहों में कितने भी कांटे हों लहूलुहान भले हो पग तेरा आनन पर पर न निराशा हो तू स्वयं स्वयं का है द्योतक कुछ और न तेरा है परिचय यह जीत तेरी मात्र तेरी हीं जो हार गया, उठ आगे बढ़

वृक्षारोपण

बच्चों का भविष्य बनाएं चार ऋतुएं वापस लाएं बादल को फिर बुलाएं आओ मिल वृक्ष लगाएं बांध दें पर्वत और मिट्टी भूस्खलन से मिले मुक्ति सृष्टि को पुनः बसाएं हर ओर हरियाली लाएं मकान नहीं वृक्षों का हो वन प्रदूषण रहित सबका जीवन वर्षा भी तब हो घनघोर खुशियों का संचार चहुंओर

क़िताब

जीवन के बीते पल लिखा चुकी क़िताब बदलाव असंभव आगे क्या व्यवहार भविष्य के पल आने वाला कल सूख गए पन्ने जो सीख, नवजीवन दो बीता उसको बिसार दो क़िताब को निखार दो कर्म करो ऐसा कुछ पुनः वो पन्ने संवार दो जो थे इत उत बिखरे इधर उधर वो टुकड़े समेटो सबको साथ लिखो कोई किताब

किनारा तुम

तेरा मुझसे खफा होना पल भर को जुदा होना ये पल तो बीत जाता है मगर मुझको सताता है शिकन वो तेरे चेहरे की जलन वो तेरे हीं मन की जब मैं तुमको सताता हूं तुम्हें आस पास पाता हूं हंसी तुमसे कमी तुमसे मैं वो बादल नमी तुमसे जब भी मैं टूट जाता हूं तुम्हें बस पास पाता हूं मेरी हर खुशी हो तुम मेरी जिंदगी बस तुम बाकी सब छलावा है हंसने का दिखावा है तू मेरे दिल की धड़कन है तू हीं तो मेरा जीवन तुम्हारे पास रहता जब हर गम दूर चला जाता मेरी सांसों की खुशबू तुम मेरी आंखों की छाया तुम जब तेरे पास रहता हूं मैं रहता हूं जहां से गुम जो दिल से गौर से पूछो कहेगा वो हर एक बातें की कैसे दिन गुजरता है और कैसे कटती है रातें मैं नदिया तुम किनारा हो जीने का तुम सहारा हो भटकता कोई बादल मैं हिमालय सी है पर्वत तुम

गुस्से से घूरना तुम्हारा

वो नजरों से चुपके से देखकर तेरा मुड़ जाना बड़े हीं गौर से तकना गुस्से से झटक जाना तुम्हारी हरकतें कहती भले तुम चुप हो रहती इशारे कह हीं देते सब निगाहें बोल हीं देती हैं नहीं कहना तुम्हें कुछ भी न मुमकिन यूं दूर हीं रहना तेरे जज्बात को मैं समझूं  नहीं सहना तुम्हें कुछ भी मगर मुझसे अलग हो क्यों क्यों दिल को थाम बैठी हो क्यों सकुचाती भला हो तुम क्यों घबराया सा तेरा चेहरा मुझे अब तक ये शक था मोहब्बत तुमसे बेशक था तुम्हारे मन की बेचैनी उफ पता न था मुझको हीं कुछ

बारिश

कभी बारिश जो आती है मुझे जी भर भिगोती है शायद उसकी आंखें भी देखकर मुझको रोती है वो बादल तब गरजते हैं वो जी भर के बरसते हैं उन्हें भी मेरी ये तनहाई शायद न रास आती है बहुत हीं दूर से लाते हैं नमी को साथ वो अपनें भटक कर राह में बरसे ज्यों टूट जाते हैं सपने न खुद पर काबू होता है न राहों की ख़बर होती मिले कोई भी राहों पर बारिश सबको भिगोती हों जैसे गुम भटकते हैं मेघ क्या राह तकते हैं किसी को ढूंढते शायद किसी को पूजते शायद

ढलती शाम

धुंधली सुबह से पार होकर सूरज की किरणें अंबर पर दिन चढ़ा दिन ढलने को है ढलती शाम सूरज नभ पर सूने आकाश में आते तारे जगमग करने रात बेचारे चांद ले आया संग चांदनी बिखेरने को अविरल रौशनी बैठ चांद तारों के नीचे तुम्हारी याद मुझे आती साथ बिताए संग में जो यादों में वो आती जाती मुस्कान तुम्हारी, तेरा शर्माना हाथों से वो चेहरे को छुपाना कभी शिकन वो तेरे चेहरे की कभी हंसना कभी रूठ जाना कभी सुबह सा जगमग चेहरा और शाम सी कभी झिलमिल रौशन रहा खुशियों से हर पल पल बिताए साथ जो घुलमिल