बारिश

कभी बारिश जो आती है
मुझे जी भर भिगोती है
शायद उसकी आंखें भी
देखकर मुझको रोती है

वो बादल तब गरजते हैं
वो जी भर के बरसते हैं
उन्हें भी मेरी ये तनहाई
शायद न रास आती है

बहुत हीं दूर से लाते हैं
नमी को साथ वो अपनें
भटक कर राह में बरसे
ज्यों टूट जाते हैं सपने

न खुद पर काबू होता है
न राहों की ख़बर होती
मिले कोई भी राहों पर
बारिश सबको भिगोती

हों जैसे गुम भटकते हैं
मेघ क्या राह तकते हैं
किसी को ढूंढते शायद
किसी को पूजते शायद

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