ढलती शाम

धुंधली सुबह से पार होकर
सूरज की किरणें अंबर पर
दिन चढ़ा दिन ढलने को है
ढलती शाम सूरज नभ पर

सूने आकाश में आते तारे
जगमग करने रात बेचारे
चांद ले आया संग चांदनी
बिखेरने को अविरल रौशनी

बैठ चांद तारों के नीचे
तुम्हारी याद मुझे आती
साथ बिताए संग में जो
यादों में वो आती जाती

मुस्कान तुम्हारी, तेरा शर्माना
हाथों से वो चेहरे को छुपाना
कभी शिकन वो तेरे चेहरे की
कभी हंसना कभी रूठ जाना

कभी सुबह सा जगमग चेहरा
और शाम सी कभी झिलमिल
रौशन रहा खुशियों से हर पल
पल बिताए साथ जो घुलमिल

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