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Showing posts from August, 2024

क्या कहूं

समझूं तुझे, मेरे बस की बात नहीं तू कैसी है, मुझे कुछ भी ज्ञात नहीं कभी लगता तुझे हद तक जानता कभी लगता, कुछ नहीं पहचानता किन शब्दों में लिखूं अपनी भावनाएं जानता हूं, तुम सब कुछ जानती हो पर तुम्हारा स्वभाव है भला क्यों ऐसा मुझे मानती, फिर भी नहीं मानती हो तू तो बदलती है मौसम की तरह कभी पास आती कभी दूर जाती कभी लगे तुम्हें अपनानपन मुझसे कभी लगे मैं कुछ भी नहीं तेरे लिए और इस कश्मकश के बीच हीं बस सदैव पीसता रहता हूं मैं कभी तुम मुझे कितना मानती और एक ही पल में दूर जाती क्या हम दोनों अपने रिश्ते को एक विशालता नहीं दे सकते क्या पास आना संभाव्य नहीं क्या डूब जाने का भाव नहीं कहीं न कहीं हम पास तो हैं मानो न मानो हम साथ तो हैं हम दोनों के बीच एक चाहत इसे न मानना तुम्हारी आदत पर तुम भी मुझे तलाशती हो आंखें मूंद तू मुझे निहारती हो कितना भी दूर कर दो स्वयं को पर मन हीं मन मुझे पुकारती हो और कैसे भी हों तुम्हारे सितम मुझे पास पाओगी तुम हरदम यकीं इस बात का तुम्हें भी है भरोसा मुझपर सदा तुम्हें भी है तुझे मैं मझधार में छोड़ नहीं सकता जलाओ जितना मुंह मोड़ नहीं सकता कभी तो कद्र करोगी मेरे प्रेम का तुम...

अभी तो उसकी आंख लगी थी

अभी तो उसकी आंख लगी थी आने थे उसको स्वप्न सुनहरे अभी सफ़र अरमानों का था अभी तो उसकी बांह खुली थी स्वछंद था उड़ना आसमान में नाम था करना उसे जहान में अभी तो पंख फैलाई थी वो अभी कुछ करने आई थी वो अभी तो ये आरंभ ही था अभी तो करना था बहुत पर गिद्धों की नज़र पड़ी असमय सबको छोड़ चली

फर्क नहीं

खेल जो तूने है खेला सोंचती मुझको छोड़ा तू हीं रह गई अकेली मेरा भला क्या बिगड़ा बनाए तू चेहरा जैसा पर दिल तेरा है टूटा मैं भला रहूं क्यों रूठा समझूँ तेरा राज़ गहरा तू तो हमेशा ये समझी की छोड़ कर मुझको मुंह मोड़ कर मुझसे तू मुझको रुला जाएगी पर देख कर हालत तेरी तेरा यूं मुझको जलाना न देख मुझे मुस्कुराना स्वयं में हीं जल जाएगी मैं तो आज़ाद परिंदा नहीं कोई मेरा घरौंदा मुझे जहां प्रेम मिलेगा मैं वहीं ठहर जाऊंगा सोंचूँ क्यों तेरे बारे न जिया तेरे सहारे तू है आग अगर तो मैं पानी सा शीतल जाए, जहां भी तू जाए भले तू न वापस आए मुझको कोई फर्क नहीं मैं एक खाली सा बोतल

आशा

माना निराशाएं हैं घेरे माना घनघोर हैं अंधेरे  आशा की किरण भी आएगी निराशाएं संपूर्ण छँट जिएंगी वक़्त ज़रा बेरहम तो क्या ढा रहा जो सितम तो क्या परीक्षाएं है लेती ये जिंदगी ग़म भी देती, है देती खुशी हाँ कुछ अपनेँ चले गए हाँ कुछ सपनें टूट गए चलता रहेगा पर ये जीवन धीरज रखो मनुष्य हरदम वो उधर उजाले की किरण वो आकाश धरा का मिलन धैर्यवान रख तू तन और मन यहीं सुख दुःख तो है जीवन

चाह

बस यहीं चाहता मेरा मन फैले तेरे कृति की किरण मुस्कान सदैव हो मुख पर आनंदित जीवन का सफर हर कदम मैंने तेरा साथ दिया अपनापन दिया, विश्वास दिया खुशियां हर पल, न आंसु दिए कर सकता जो, किया तेरे लिए मन में मेरे कोई भाव न था कुछ पाने का स्वभाव न था सुना बहुत मैंने पर साथ दिया थी चोट लगी, पर घाव न था चक्र वक्त का चलता रहा हर पल मैं तेरे साथ रहा आंखें उठीं, थी बातें बनी मैं हिम सा पिघलता रहा हैं बहुत सहे ताने दुनिया के कहता हर कोई है तू शातिर पर मेरा विश्वास पूर्ण तुझपर कुछ भी कर दूं तेरी खातिर मैंने तुझमें सच्चाई है देखी मन में तेरे तन्हाई है देखी हां देखा तुझको मैंने चहकते पर आंखों में रुसवाई भी देखी कैसे मैं छोड़ देता तेरा साथ आया शायद थामने तेरा हांथ और आज का दिन, खुश हूं मैं सच, तू आगे बहुत है जीवन में अब तुम्हें जब देखता हूं तो लगता आराधना सफल हुई अब जी लेगी जीवन अपना मेरी यह प्रार्थना सफल हुई मैं तो बस एक डोर हीं था स्वयं में मैं कमजोर हीं था पर ठान लिया था मैने भी राहें तेरी नहीं कठिन होगी एक पथ आया था जीवन में सोचा, अब आगे बढ़ जाऊंगा तेरी याद दबा कर सीने में मैं तुझसे दूर चला जाऊंगा पर ...

लज्जा

चली किस ओर ये दुनियां  हैं बदले मुन्ने और मुन्नियां पहनावा, चाल, बोली में है कमी लिहाज़ की इनमें न कोई सेज न सज्जा न कोई सोच न लहजा बदल गई प्रवृत्ति सबकी बेबाक से, न कोई लज्जा हवाओं का रुख बदला सा नदियां बहती गलत दिशा पंछी भी राह को हैं भटके लगता हर कोई बहका सा