फर्क नहीं

खेल जो तूने है खेला
सोंचती मुझको छोड़ा
तू हीं रह गई अकेली
मेरा भला क्या बिगड़ा

बनाए तू चेहरा जैसा
पर दिल तेरा है टूटा
मैं भला रहूं क्यों रूठा
समझूँ तेरा राज़ गहरा

तू तो हमेशा ये समझी
की छोड़ कर मुझको
मुंह मोड़ कर मुझसे
तू मुझको रुला जाएगी

पर देख कर हालत तेरी
तेरा यूं मुझको जलाना
न देख मुझे मुस्कुराना
स्वयं में हीं जल जाएगी

मैं तो आज़ाद परिंदा
नहीं कोई मेरा घरौंदा
मुझे जहां प्रेम मिलेगा
मैं वहीं ठहर जाऊंगा

सोंचूँ क्यों तेरे बारे
न जिया तेरे सहारे
तू है आग अगर तो
मैं पानी सा शीतल

जाए, जहां भी तू जाए
भले तू न वापस आए
मुझको कोई फर्क नहीं
मैं एक खाली सा बोतल

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