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Showing posts from May, 2021

प्राकृतिक संपदाएँ

पुष्पों की देन खुशबु मिट्टी का लहलहाते उपज वृक्ष फल देनें को आतुर वन मौसम को रखें सहज  बादल धरा की तृष्णा बुझाएँ जल से हर प्राणी मगन आकाश सुखद तापमान लाएँ वायु बनाए रखें जीवन पर्वतराज जैव विविधता आवास पशु पक्षियों का पर्यावर्णिक मूल्य वायु से सब लेते स्वास प्राकृतिक संपदाएँ सारे अमूल्य

चाह

माना कठिन है राह परंतु छोड़ना न चाह लक्ष्य प्राप्ति का आनंद तब जब पाओगे तोड़ बाधाएं लगन परिश्रम साथ हो ध्येय की कर दिखाना बस हो प्रयोजन चाहे कोई भी न रुकना, न थक जाना अब बस विश्वास रख, निश्चय रहे हो चाह यूँ, स्वयं राह कहे बढ़े चलो, रुको नहीं थको नहीं, झुको नहीं
दर्द को भी राजनीति में झोंक दिया कारोबार लाशों से किया साथ मिलकर था चलना जब वक्त को था बदलना जब नियत नहीं बदली गई असलियत उनकी वहीं रही गिद्ध का काम तो अस्तित्व का है इंसान क्यों कुछ गिद्ध बन गए सहारा सबको बनना था जब घृणा-पैसों से बढ़ शायद उनके लिए कुछ नहीं अंततः यह सिद्ध कर गए

सब अच्छा हो जाएगा

वक़्त कभी न ठहरा ये वक़्त भी गुज़र जाएगा कठिनाइयां हुईं माना कुछ अपनें गए, कुछ सपनें टूटे बेरहम, कब तक तड़पाएगा अंत हुआ हर काल का आशाएं, बस कुछ दिन में सब अच्छा हो जाएगा न रोकें कदम, न मानें हार होगा सकारात्मकता का जीवन में पुनः संचार ये कठिन वक़्त भी बीत जाएगा

भक्षक

कुछ अपनों ने ही चाल चली तब ही तो उनकी दाल गली कुछ काँटे थे जो पुष्पों की रक्षा न किए रक्षक होकर जो बेगाने उनका कहना क्या उनकी फ़ितरत सब जानते मकसद उनकी तबाही हीं वो राष्ट्र को राष्ट्र न मानते अपनेंपन की भूले सीख को क्या घृणा इतनी प्यारी उनको धूमिल की पहचान देश की क्या कहना ऐसे सारों को