दर्द को भी राजनीति में झोंक दिया
कारोबार लाशों से किया
साथ मिलकर था चलना जब
वक्त को था बदलना जब

नियत नहीं बदली गई
असलियत उनकी वहीं रही
गिद्ध का काम तो अस्तित्व का है
इंसान क्यों कुछ गिद्ध बन गए

सहारा सबको बनना था जब
घृणा-पैसों से बढ़
शायद उनके लिए कुछ नहीं
अंततः यह सिद्ध कर गए

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