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Showing posts from April, 2020

हवाओं में बदलाव सा

हवाओं में बदलाव सा NAVNEET ।। हवाओं में बदलाव सा ।।' देखकर यूँ लग रहा, हवाओं में बदलाव सा। कठिनाई के इस क्षण में भी, मौसम ने, चेहरा अपना बदल रखा। होर लगी हुई है इंसानों में, कहीं प्रेम मचल रहा। कहीं द्वेष  हिचकोले खा रही, कहीं अप्रीति का बर्फ पिघल रहा। कहीं एकांत मन तड़पा रहा, कहीं रात में, तारे जगमगा रहे। कहीं सूरज की रौशनी बिखर गयी, कहीं दिन में अँधेरे नज़र आ रहे। क्यों न भूलकर सबकुछ, एक नई शुरुआत करें। एक दूसरे के सम्मान का, जगमग हम प्रकाश करें। प्रेम की ज्योति से फिर, चमकीला ये संसार हो। हर इंसान से प्रेम करें, अपनेपन से सबपर राज करें। जो कल भी हो सकता था, जो कल भी हो सकता है। क्यों अब बाट जोहें, क्यों न वो आज करें। - नवनीत 

स्त्री का सम्मान

स्त्री का सम्मान  NAVNEET ।। स्त्री का सम्मान  ।। कठिनाइयों से स्तब्ध नहीं, अकेली हूँ, उपलब्ध नहीं। जो होनी थी, सो हो गयी, वो होनी थी, वो हो गई। वो दुःख का पल था, बीत गया, आगे था कितना वक़्त पड़ा। मैंने हार पर मानी नहीं, खुद में थी कुछ ठानी रही। मेरी अपनी सोच, मेरी अपनी ज़िन्दगी। छिन गया था कुछ मेरा, क्या उसके बिन मैं जीती नहीं। अपने कदम आगे बढाए फिर, और खुद को एक स्थान दिया। एक लक्ष्य फिर निर्धारित की, पाने को उसको कर्म किया। कुछ लोगों का था साथ मिला, कुछ ने पर खींचे हाँथ भी। पर पथ पर अपने अडिग रही, क्यूंकि साथ था मेरे मेरा ध्येय। मैं चलती हूँ पर बिना थके, ये राह मेरी न रुके। आप अपनी सोच पर स्थायी रहें, मैं अपनी राह पर चलती हूँ। मैंने निश्चित कर रखी नियत अपनी, मैं अपने पथ पर निकलती हूँ। मैं नारी हूँ, मुझमे सम्मान, महत्व अपनी मैं समझती हूँ। - नवनीत    

छिन गयी है रोज़ी रोटी

छिन गयी है रोज़ी रोटी NAVNEET ।। छिन गयी है रोज़ी रोटी ।। छीन गई है रोज़ी रोटी, बहुतेरे इंसान की। न साधन, न अन्न राशन, पास इनके है बचा। हाँथ बढ़ा रहे हैं कुछ, देने को इनको साधन। इंसानियत को धर्म मान, पहुंचा रहे सबको राशन। कठिनाई के इस वक़्त में, बढ़ा रहें हैं जो अपना हाँथ। कर्त्तव्य हमारा भी है देना, ऐसे वक़्त में इनका साथ । दान से है पुण्य मिलता, और मिलती आत्मसन्तुस्टि। बूँद बूँद से सागर बनता, कण कण से बनती है मिटटी। आओ इनका साथ दें, ह्रदय में इनके विश्वास दें। जो भी हो सकता करें, कठिनाइयों से न डरें। पुण्य का यह काम है, मानव सेवा ही चारों धाम है। जब भी विप्पति आती है, इंसान का साथ देता इंसान है। शायद यह परीक्षा की घड़ी है, महामारी हमें हराने पर अड़ी है। सामना करें डटकर इसकी, यह समय भी जाएगा। लेकर नई रोशनी, सूरज फिर से आएगा। हार न मानें, करें सामना, जल्द जाए यह वक्त, यही कामना। इंसानियत दिखाने का वक़्त है, माना, वक़्त ज़रा सख्त है। - नवनीत

माँ

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माँ  NAVNEET ।। माँ ।। ईश्वर ने बहुत कुछ दिया, सब को इस संसार में। सबसे पावन भेंट है माँ, साथ होती हर हाल में। जननी है, जन्मदात्री है, माँ जीवन निर्मात्री है। भावना संवेदना की मूर्ति है, माँ है तो जीवन पुलकित है। अपने संतान के लिए, हर कष्ट सहती है माँ। बोध नहीं होने देती पर, स्वयं में हर लेती है। माँ, एक आशा है, सुख में देती साथ है। दुःख में देती दिलासा है, संतान सुख हीं, माँ की अभिलाषा है। माँ, विश्वास है, माँ, स्वयं ईश्वर है। माँ का प्रेम निश्छल है, माँ, सबसे विशिष्ट है। सृस्टि की जननी है माँ, पालन करने वाली है माँ। संतान के हर परिस्थिति में, साथ चलने वाली है माँ। माँ का प्रेम अतुल्य है, इसका न कोई मूल्य है। माँ की सेवा में है भक्ति, तन मन को देती है शक्ति।

गांव की वो मस्तियाँ

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गांव की वो मस्तियाँ  NAVNEET ।।  गांव की वो मस्तियाँ  ।।  छूट गए वो गांव गलियारे, छूट गए वो बचपन सारे। वो शुद्ध हवाएं छूट गईं, लगता ज़िन्दगी रूठ गई। छूट गए वो विद्यालय, जो वृक्ष के छावं में लगते थे, जब साथ में हर कक्षा के बच्चे, हँसते खेलते पढ़ते थे। वो दादा दादी छूट गए, वो चाचा चाची छूट गए। वो फुलवारी छूट गयी, वो फूस के छप्पर छूट गए। वो खेत खलिहान कहाँ गए, वो पीपल की छांव कहाँ गई, वो रात पूनम की कहाँ गई। वो खुले आसमान कहाँ गए। खेलना वो मिट्टियों से, धरती पर गिरे पत्तियों से। वो बचपन के साथी छूट गए, वो किस्से कहानी छूट गए। गांव की वो मस्तियाँ, गांव की अठखेलियां। गांव के वो बगीचे, गांव के सखा सहेलियाँ। छोड़कर सब आ गए, शहर के शोर में। भूल गया इंसान सब, रोज़ी रोटी की होड़ में। क्यों वापस नहीं हम जा सकते, क्यों फिर से नहीं घर बना सकते। क्या वापस आ सकते वो दिन, जो थे हर रंगों से भी रंगीन। - नवनीत

अधूरी आशाएं- Unfulfilled Dreams

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अधूरी आशाएं  -NAVNEET ।।  अधूरी आशाएं   ।। चलता जा रहा हूँ, ज़िन्दगी की राहों में। यादें पुरानी लिए, अपनी निगाहों में। कुछ प्राप्त हुआ, कुछ पा न सका। कुछ साथ रहे, कुछ भुला न सका। वो पल भी, आँखों के इर्द गिर्द हैं। जिस पल ने, मुझसे कुछ छीना था। पर उस पल ने भी सिखाया, की आगे कैसे जीना था। कुछ अधूरी आशाएं, कुछ अधूरी कल्पनाएं। हमें आने वाली राहों का, प्रयोजन बतलायें। हमनें उन अधूरी आशाओं को, अपनी राहों का रास्ता बनाया। पत्थर बनाकर क्या लाभ होता, वो तब भी श्राप था, वो अब भी श्राप होता। हमनें उन अधूरी आशाओं को, स्वयं पर हावी होने न दिया। उन्हें कल्पना बना कर, ज़िन्दगी और श्रेष्ठतर किया। - नवनीत

मरघट- एक सच्चाई

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मरघट- एक सच्चाई  ।। मरघट- एक सच्चाई ।। एक सच्चाई मरघट है, जहाँ जाना सबको एक दिन है। मरघट से सबका रिश्ता है, मरघट में हर कोई टिकता है। शिव धाम में एक दिन जाना है, चलता न कोई बहाना है। ये सत्य है, ये भी एक पल है, आज नहीं तो जाना कल है। मरघट का हर कोई वासी है, मरघट जीवन का काशी है। रास्ता मरघट का छूट गया, सब गली मोहल्ला घर में है। कौन आएगा अब मरघट में, समाज सारा डर में है। शिवधाम में अब सन्नाटा है, कोई आता न कोई जाता है। एक बार तो आना है सबको, सबका यहाँ से नाता है। यूँ मरघट की बदनामी क्यों, क्यों डर मरघट का दिल में है। मरघट तो बस एक रास्ता है, मरघट का पड़ाव शिव ही है। मरघट ब्रह्मलोक का रास्ता है, इस राह से सब कोई जाता है। जिसने हैं जैसे कर्म किये, वैसा पुनर्जन्म वो पाता है।

जन्म प्रभु राम का

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जन्म प्रभु राम का NAVNEET KUMAR ।। जन्म प्रभु राम का ।।  आज अयोध्या में उठी थी, प्रभु राम की किलकारी। जन्म लिए थे आज भगवन, खिल उठी थी दशरथ की क्यारी। माँ कौशल्या हर्षाई थी,  मन में थी खुशियां भरी। शांत भाव, प्यारा स्वाभाव, मुख पे हंसी, श्री राम के। शीतल मन, स्पष्ट जीवन, न घृणा, न ही द्वेष था। ऐसा पौरुष, ऐसी काया, श्री राम सा न कोई था। मातृ, पितृ, भ्राता प्रेम के, उदाहरण श्री राम हैं। चार्रों धामों जैसा श्रेष्ठ, प्रभु राम का नाम है। चेहरे की आभा राम की, मन को बहुत ही भाती है। देखकर मुस्कान उनकी, मन बहुत हर्षाता है। मंगल मूर्ति श्री राम हैं, कष्ट निवारक श्री राम है। सबसे पावन नाम राम का, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान है।  पालनकर्ता, दुःखहर्ता, श्री विष्णु रूप भगवान हैं। - नवनीत