हवाओं में बदलाव सा
हवाओं में बदलाव सा NAVNEET ।। हवाओं में बदलाव सा ।।' देखकर यूँ लग रहा, हवाओं में बदलाव सा। कठिनाई के इस क्षण में भी, मौसम ने, चेहरा अपना बदल रखा। होर लगी हुई है इंसानों में, कहीं प्रेम मचल रहा। कहीं द्वेष हिचकोले खा रही, कहीं अप्रीति का बर्फ पिघल रहा। कहीं एकांत मन तड़पा रहा, कहीं रात में, तारे जगमगा रहे। कहीं सूरज की रौशनी बिखर गयी, कहीं दिन में अँधेरे नज़र आ रहे। क्यों न भूलकर सबकुछ, एक नई शुरुआत करें। एक दूसरे के सम्मान का, जगमग हम प्रकाश करें। प्रेम की ज्योति से फिर, चमकीला ये संसार हो। हर इंसान से प्रेम करें, अपनेपन से सबपर राज करें। जो कल भी हो सकता था, जो कल भी हो सकता है। क्यों अब बाट जोहें, क्यों न वो आज करें। - नवनीत