छिन गयी है रोज़ी रोटी
छिन गयी है रोज़ी रोटी
NAVNEET
।। छिन गयी है रोज़ी रोटी ।।
छीन गई है रोज़ी रोटी,
बहुतेरे इंसान की। न साधन, न अन्न राशन,
पास इनके है बचा। हाँथ बढ़ा रहे हैं कुछ,
देने को इनको साधन। इंसानियत को धर्म मान,
पहुंचा रहे सबको राशन। कठिनाई के इस वक़्त में,
बढ़ा रहें हैं जो अपना हाँथ। कर्त्तव्य हमारा भी है देना,
ऐसे वक़्त में इनका साथ।
दान से है पुण्य मिलता,
और मिलती आत्मसन्तुस्टि। बूँद बूँद से सागर बनता,
कण कण से बनती है मिटटी। आओ इनका साथ दें,
ह्रदय में इनके विश्वास दें। जो भी हो सकता करें,
कठिनाइयों से न डरें। पुण्य का यह काम है,
मानव सेवा ही चारों धाम है। जब भी विप्पति आती है,
इंसान का साथ देता इंसान है।
शायद यह परीक्षा की घड़ी है,
महामारी हमें हराने पर अड़ी है। सामना करें डटकर इसकी,
यह समय भी जाएगा। लेकर नई रोशनी,
सूरज फिर से आएगा। हार न मानें, करें सामना,
जल्द जाए यह वक्त, यही कामना। इंसानियत दिखाने का वक़्त है,
माना, वक़्त ज़रा सख्त है।
- नवनीत
NAVNEET
।। छिन गयी है रोज़ी रोटी ।।
छीन गई है रोज़ी रोटी,
बहुतेरे इंसान की। न साधन, न अन्न राशन,
पास इनके है बचा। हाँथ बढ़ा रहे हैं कुछ,
देने को इनको साधन। इंसानियत को धर्म मान,
पहुंचा रहे सबको राशन। कठिनाई के इस वक़्त में,
बढ़ा रहें हैं जो अपना हाँथ। कर्त्तव्य हमारा भी है देना,
ऐसे वक़्त में इनका साथ।
दान से है पुण्य मिलता,
और मिलती आत्मसन्तुस्टि। बूँद बूँद से सागर बनता,
कण कण से बनती है मिटटी। आओ इनका साथ दें,
ह्रदय में इनके विश्वास दें। जो भी हो सकता करें,
कठिनाइयों से न डरें। पुण्य का यह काम है,
मानव सेवा ही चारों धाम है। जब भी विप्पति आती है,
इंसान का साथ देता इंसान है।
शायद यह परीक्षा की घड़ी है,
महामारी हमें हराने पर अड़ी है। सामना करें डटकर इसकी,
यह समय भी जाएगा। लेकर नई रोशनी,
सूरज फिर से आएगा। हार न मानें, करें सामना,
जल्द जाए यह वक्त, यही कामना। इंसानियत दिखाने का वक़्त है,
माना, वक़्त ज़रा सख्त है।
- नवनीत
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