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Showing posts from September, 2024

नव्य संबंध

आ तुझे बाहों में भरकर तेरे जिस्म से लिपट कर जुल्फों की छांव में आऊं प्रेम तेरा जी भर के पाऊं जी भर तुझको प्यार करूं जी भर तू मुझसे प्यार करे डूब जाएं एक दूजे में दोनो ना ही मैं ना तू इनकार करे चूम लूं मैं प्यासे लब तुम्हारे तुम गालों पर मेरे चुम्बन दो आ जाएं दोनों आलिंगन में ठहरा हुआ सा कुछ पल हो हृदय में तुम्हारे बात दबी जो बेझिझक तुम मुझसे कह दो रखो नहीं अब कैसी भी दूरी मन की कामना कर लो पूरी भला क्यों छुपाती हो भावनाएं काटती भला क्यों अकेली रातें इन एकाकी रातों को साथी दो कहीं बुझ न जाए दीप बाती दो दोनों अब मिटा दें ये दूरी रहे नहीं कोई भी लाचारी बंधन में न बंधें अब दोनों सीमाएं अब बीच में न हो एक हो जाएं एक पल में याद रहे वो पल जीवन में संग करें तमाम हम बातें जागते हुए बस बीतें रातें प्रातः की पहली किरण में सूरज जब आए आंगन में एक नव्य संबंध दोनों का जगमगाए दोनों का रिश्ता

शतरंज

शतरंज बिछाए राहों में है मन में सोचे चाल कई मैं निकलूं कैसे बाहर को मुझे लूटने को तैयार कई सच्चाई की अब पूछ नहीं भावनाओं की न कद्र यहां सही रास्ते में बस पत्थर हैं चाल चलो बढ़ जाओ यहां हर राह में शकुनी है बैठा माहौल यह देखो है कैसा चलना तुम संभल कर ही हो माहिर खिलाड़ी तुम भी

गुनहगार मैं ही सही

तेरे लिए सब कुछ किया  तूने सब कुछ भुला दिया तुम्हें प्यार की कद्र न थी निभाना तुम्हें आया नहीं सच प्रयोजन आचरण तेरा थी तुम्हें तेरी खुशियां प्यारी न सोचा तनिक मेरे बारे में सूख गई मेरे मन की क्यारी प्यार तेरा तो एक छलावा था अपनापन केवल दिखावा था तुम चाहती थी बस साथ मेरा बस अपने सिर पर हाथ मेरा था मैंने तेरा साथ दिया प्रेम दिया विश्वास दिया पैरों पर अपने खड़ी हुई होते हीं मुझे भुला दिया तो क्या हुआ जो दिल टूटा किसी अपने का साथ छूटा  सच्चाई सामने तो आ गई गुनहगार चलो मैं ही सही

संबंध मधुर

बना रहे यह संबंध मधुर रहे प्रेम का संचार प्रचुर विश्वास कदापि टूटे ना साथ कभी भी छूटे ना हर्ष या वेदना में साथ रहें यूं मन की सारी बात कहें नहीं रहे कोई भी संकोच समतुल्य रहे अपनी सोच संग रहें यथा शशि गगन बहें जैसे आनंदित पवन रहे निर्मलता मां गंगा सी मात्र परस्पर हीं रहे लगन स्वीकृत हो निज अल्पता  आदर करें निज अपूर्णता मिलें सदैव अपने विचार हो स्नेह का स्वस्थ संचार साथ हमारे हो प्रतिबद्धता रहे रिश्ते में सर्वदा स्थिरता समय चले चाहे कोई खेल बना रहे साझा अपना मेल

ऐसे हीं चमकना

वह श्रृंगार में कहां, जो बात सादगी में वह बसंत में कहां, है जो बात वृष्टि में सुंदरता तुम्हारी, निखर रही है कितनी ज्यों रति जमीं पर, विहार कर रही हो माथे पर तेरे कुमकुम, शोभा बढ़ाए तेरी रक्ताभ सी लालिमा, मन को लुभाए मेरी ज्यों सुबह का अरुण, आसमान में आए वो लालिमा से अपनी, मंत्रमुग्ध कर जाए मोती से नैन तेरे, नैनों में तेरे काजल गहरी हो झील कोई, या कोई सागर छुपी गहराइयां कई, आंखों के अंदर जानना कठिन है, अनंत यह समुंदर लगता है देख ऐसा, कोई अप्सरा है आई अपनी अदाओं से वो, मुझे बहुत लुभाई यूं देख गौर से तुम, मुझको रिझा रही हो क्यों लग रहा जैसे, मुझको बुला रही हो प्रमोद में तुम यूं हीं, सदैव ऐसी रहना मंद मंद हंसना, तुम मुस्कुराती रहना सादगी श्रृंगार तेरी, सादगी ही गहना खुशहाल यूं रहना, ऐसे हीं चमकना