नव्य संबंध
आ तुझे बाहों में भरकर
तेरे जिस्म से लिपट कर
जुल्फों की छांव में आऊं
प्रेम तेरा जी भर के पाऊं
जी भर तुझको प्यार करूं
जी भर तू मुझसे प्यार करे
डूब जाएं एक दूजे में दोनो
ना ही मैं ना तू इनकार करे
चूम लूं मैं प्यासे लब तुम्हारे
तुम गालों पर मेरे चुम्बन दो
आ जाएं दोनों आलिंगन में
ठहरा हुआ सा कुछ पल हो
हृदय में तुम्हारे बात दबी जो
बेझिझक तुम मुझसे कह दो
रखो नहीं अब कैसी भी दूरी
मन की कामना कर लो पूरी
भला क्यों छुपाती हो भावनाएं
काटती भला क्यों अकेली रातें
इन एकाकी रातों को साथी दो
कहीं बुझ न जाए दीप बाती दो
दोनों अब मिटा दें ये दूरी
रहे नहीं कोई भी लाचारी
बंधन में न बंधें अब दोनों
सीमाएं अब बीच में न हो
एक हो जाएं एक पल में
याद रहे वो पल जीवन में
संग करें तमाम हम बातें
जागते हुए बस बीतें रातें
प्रातः की पहली किरण में
सूरज जब आए आंगन में
एक नव्य संबंध दोनों का
जगमगाए दोनों का रिश्ता
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