ऐसे हीं चमकना

वह श्रृंगार में कहां, जो बात सादगी में
वह बसंत में कहां, है जो बात वृष्टि में
सुंदरता तुम्हारी, निखर रही है कितनी
ज्यों रति जमीं पर, विहार कर रही हो

माथे पर तेरे कुमकुम, शोभा बढ़ाए तेरी
रक्ताभ सी लालिमा, मन को लुभाए मेरी
ज्यों सुबह का अरुण, आसमान में आए
वो लालिमा से अपनी, मंत्रमुग्ध कर जाए

मोती से नैन तेरे, नैनों में तेरे काजल
गहरी हो झील कोई, या कोई सागर
छुपी गहराइयां कई, आंखों के अंदर
जानना कठिन है, अनंत यह समुंदर

लगता है देख ऐसा, कोई अप्सरा है आई
अपनी अदाओं से वो, मुझे बहुत लुभाई
यूं देख गौर से तुम, मुझको रिझा रही हो
क्यों लग रहा जैसे, मुझको बुला रही हो

प्रमोद में तुम यूं हीं, सदैव ऐसी रहना
मंद मंद हंसना, तुम मुस्कुराती रहना
सादगी श्रृंगार तेरी, सादगी ही गहना
खुशहाल यूं रहना, ऐसे हीं चमकना

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