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Showing posts from February, 2024

प्रभु कृपा

मैं याचक हीं बना रहा बस याचना करता रहा मेरी प्रार्थना सुन हे प्रभु है तेरी कृपा बरस पड़ी मैं लेता रहा बस राम नाम तुमने बनाए मेरे सारे काम बसे हृदय में तुम भोलेनाथ सदैव दिया तुमने मेरा साथ पूजते तुम्हें हे हनुमान जी बनाते आप सारे काम जी सच्चे मन करता श्रीगणेश जीवन में न किसी से क्लेश तेरी आराधना से मां लक्ष्मी रही न मुझे कभी भी कमी तेरी पूजा से हे मां सरस्वती सदा कृपा तेरी मुझपे बरसी कृपा तेरी हीं हर बार है तो ये चल रहा संसार है जीवन का तू आधार है स्वामी बारंबार प्रणाम है बस धर्म हीं के तो मार्ग पर चलते हम तुमको याद कर सृष्टि सारी विधाता तुम्हीं से जो भी आता आता तुम्हीं से जन्मदाता तू हीं पालनकर्ता मृत्युपरांत है तू हीं धाम भी तू सबकी किरण सुबह की तुम हीं रात दोपहर शाम भी ले नाम तेरा चलते चलें बस आगे हम बढ़ते रहें करुणा तेरी मुझ पर रहे बस वो करूं जो तू कहे क्षणभर का यह निकाय है इसका न कुछ अभिप्राय है चलता ये कर्म के बल हीं पे यथा कर्म समान फल मिले यह आत्मा जब भी जाएगी संग कर्म हीं बस ले जाएगी चरित्र अनुसार फल पाएगी यहां बस यादें हीं रह जाएगी

एक हीं पल में

जब भी ये लगता है तुम पास हीं तो हो तुम दूर चले जाते बस एक हीं पल में जब भी ये लगता है तुम ख़ास हीं तो हो तुम पराया बना देते बस एक हीं पल में तोड़ देते हो मेरा सपना हूं मैं तो तुम्हारा अपना मैं यह सोचता रहता सदा यूं हीं तब हर एक पल में मैं क्या हूं तुम्हारे लिए यह समझ न पाया मैं प्रयत्न तो बहुत किया सोचा, पर निरुत्तर रहा तुम्हें कोई अंतर न पड़ता यूं छोड़ना तुम्हारी आदत जब चाहती हो चाहुँ तुम्हें जब चाहती हो भूल जाऊं? पर यूं साथ नहीं होता विश्वास यूं नहीं होता हर वक्त एक सी रहो या तो मुझे छोड़ हीं दो कब तलक इस दर्द में जिऊं उस फलक में तारे क्यों गिनू जब टूटता नहीं कोई भी तारा जब बनेगा नहीं तू मेरा सहारा तो ऐसी कशमकश में भला  जीवन अपना क्यों बिताना जब मिलना हीं नहीं साथ तो स्वयं को क्यों तड़पाना तुम न तो हां ही कहोगे न हीं तुम ना हीं कहोगे इस उधेड़–बुन में भला मुझे जीवन क्यों बिताना बात तो तुम समझते हो हो ख़ास तुम समझते हो और मेरे इस अपनेपन की  जज़्बात तुम समझते हो तुमने मुझे खिलौना समझा प्रीयतम बस खेला है मुझसे शायद यह तो मेरी नियति है विश्वास किया था मैंने तुझपे ये माना की मुझमे...

खत

मन की सारी बातें लिख डाली एक कागज़ का टुकड़ा ले कर भावनाएं हमनें सारी कह डालीं यादों को तुम्हारे दिल में रखकर कब मिले थे कहां मिले थे कैसे बिताए हमनें हर पल क्यों हुआ अपनापन भला बढ़े क्यों हम एक पथ पर लिख डाली हर बात खुलकर करूंगा क्या मैं मन में रखकर कहना था इसलिए कह डाला है शब्दों को मैंने पत्र में उतारा है पता नहीं मन में तेरे क्या हां कहोगे तुम या न कहोगे जो कहोगे उसको मानूंगा मैं पर तुझको अपना जानूंगा मैं है कमी तुम्हारी मुझको खलती आ जाओ न तुम पास में जल्दी बैठो हाथों में खत तुम रख कर कहना मन की बातें खत पढ़कर खो जाओगी तुम मेरी बातों में थम जाएगा यह चंद्रमा रातों में सोचता हूं मैं तुम सोचोगी क्या  सोचोगी मुझको दिन में रातों में

अधूरा आलिंगन

लगे जब कोई अपना सा हो साथ, न हो सपना सा हर्ष वेदना में जो पास रहे होने का उसके आभास रहे उनके मृदु होंठों का चुंबन करे सर्वदा पूर्ण मेरा जीवन है पर यह तो एक स्वप्न हीं अभी तो है अधूरा आलिंगन भर ले मुझको अपने कर में ले छुपा मुझे इस आंचल में दे ओढ़ा मुझे चुंदड़ी अपनी उलझा मुझे अपनी लटों में ले चल मुझे उस पार कहीं जंचता अब तो संसार नहीं जीने का कुछ आधार नहीं कर संपूर्ण अधूरा आलिंगन उल्लास का अब संचार तू कर नहीं सोच तनिक तू इधर उधर मन मस्तिष्क में मेरे घर तू कर मेरी भुजा पकड़ के संग तू चल बनाकर तू रिश्ता मुझसे पावन ले आ मेरी जीविका में सावन बरखा के उस मधुऋतु में तब होगा समाप्त अधूरा आलिंगन

चले जाना ...

चले जाना, अभी कुछ देर आकर तो, ठहर जाओ करो बातें, तुम मुझसे कुछ जी भर जाए, चले जाना नज़र क्यों फेरती हो तुम मुझे क्यों घेरती हो तुम टिकाओ मुखपे नजरों को जो कहना है, तुम कह डालो अभी कुछ बात  है कहनी अभी कुछ बात  है सुननी  उन बातों को, मेरे मन के समझ जाओ, चले जाना तुम्हारे पास आने से गम मुझसे दूर जाते हैं नज़र के सामने जो तुम वो आने से कतराते हैं तुम्हारे ख्वाब आते है मुझे हरपल सताते हैं ख्वाबों को, हकीकत में बदल दो फिर, चले जाना कदम को अपने रोको तुम अभी न मुझको टोको तुम बैठो तुम भूलकर सबकुछ सब हर लूंगा तुम्हारे दुःख जो आए हो, तो रुक जाओ ज़रा मेरे करीब आओ ये दूरी थोड़ी देर में सिमट जाए, चले जाना बड़ी मुश्किल से आते हो बड़ी जल्दी तुम जाते हो मुझे कितना सताते हो हंसाते हो, रुलाते हो बस कुछ पल, बैठो तुम निहारूं गौर से तुझको मेरी आंखें, तेरे चेहरे पे बस जाए, चले जाना