अधूरा आलिंगन
लगे जब कोई अपना सा
हो साथ, न हो सपना सा
हर्ष वेदना में जो पास रहे
होने का उसके आभास रहे
उनके मृदु होंठों का चुंबन
करे सर्वदा पूर्ण मेरा जीवन
है पर यह तो एक स्वप्न हीं
अभी तो है अधूरा आलिंगन
भर ले मुझको अपने कर में
ले छुपा मुझे इस आंचल में
दे ओढ़ा मुझे चुंदड़ी अपनी
उलझा मुझे अपनी लटों में
ले चल मुझे उस पार कहीं
जंचता अब तो संसार नहीं
जीने का कुछ आधार नहीं
कर संपूर्ण अधूरा आलिंगन
उल्लास का अब संचार तू कर
नहीं सोच तनिक तू इधर उधर
मन मस्तिष्क में मेरे घर तू कर
मेरी भुजा पकड़ के संग तू चल
बनाकर तू रिश्ता मुझसे पावन
ले आ मेरी जीविका में सावन
बरखा के उस मधुऋतु में तब
होगा समाप्त अधूरा आलिंगन
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