खत
मन की सारी बातें लिख डाली
एक कागज़ का टुकड़ा ले कर
भावनाएं हमनें सारी कह डालीं
यादों को तुम्हारे दिल में रखकर
कब मिले थे कहां मिले थे
कैसे बिताए हमनें हर पल
क्यों हुआ अपनापन भला
बढ़े क्यों हम एक पथ पर
लिख डाली हर बात खुलकर
करूंगा क्या मैं मन में रखकर
कहना था इसलिए कह डाला
है शब्दों को मैंने पत्र में उतारा
है पता नहीं मन में तेरे क्या
हां कहोगे तुम या न कहोगे
जो कहोगे उसको मानूंगा मैं
पर तुझको अपना जानूंगा मैं
है कमी तुम्हारी मुझको खलती
आ जाओ न तुम पास में जल्दी
बैठो हाथों में खत तुम रख कर
कहना मन की बातें खत पढ़कर
खो जाओगी तुम मेरी बातों में
थम जाएगा यह चंद्रमा रातों में
सोचता हूं मैं तुम सोचोगी क्या
सोचोगी मुझको दिन में रातों में
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