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Showing posts from April, 2022

राम

राम कौन हैं? मैं राम को नहीं जानता राम कौन है?  मैं राम को नहीं मानता राम तो मुझमें हैं राम जी तुझमें हैं अपनें को क्या जानना? तुझको क्या पहचानना? कण कण में राम हैं हर मन में राम हैं राम केवल भगवान नहीं भारत की पहचान हैं

जादू

एक छड़ी घुमाए कोई इंसानियत फिर लाए कोई अहम घृणा से भरी दुनियाँ जादू प्रेम का चलाए कोई अपनें कर्म को करे इंसान पूजे अपना अपना भगवान त्यागे न वो अपना ईमान छोड़ दे अंदर का शैतान जले फिर प्रेम का दीपक अपनापन संसार में व्यापक रहनें लायक बने समाज एक दूजे पर हो विश्वास

कागज़

लिखी जाती थीं उनमें चिट्ठियाँ होती काग़ज़ से कितनी बतियाँ पत्नी वियोग बतलाती थी माँ संतानों को समझाती थीं कागज़ जब सीमा पर जाता था सैनिकों का तब मन हर्षाता था किताबें कागज़ पर होती थीं भावनाओं को सँजोती थीं छू कर ही अनुभव होता था कागज़ संवेदनाएँ पिरोता था मात्र केवल शब्द हीं नहीं कागज़ हृदय सा होता था

उड़ चली

तितली सी उड़ान में वृक्ष वृक्ष, पुष्प पुष्प खुशियाँ बाँटती चलूँ डंटी रहूँ, लगी रहूँ नीले उस आकाश में हरी भरी ज़मीन पर खुली हवा में डोलती उड़ो, ये सबको बोलती ये पंख हैं उड़ान को न राह में विश्राम हो रंगीन मेरी काया जो बिखेरती रंगीनियाँ ये हौसला रखे रहो की राह पर डंटे रहो संग मेरे उड़ पड़ो वन नदी पर्वत चलो हँसी खुशी के संग में और चाहतों के रंग में सभी को साथ ले चली मैं उड़ चली, हाँ उड़ चली

मेरी जीत

कुछ यूँ हो गया था की करूँ क्या सूझता था नहीं ? मायूसी थी छाई जीवन में क्या कुछ कर पाऊँगी कभी ? थक हार कर, निराश हो जीवन बिताना तय था क्या ? क्या बैठ जाती सोच कर भाग्य में यहीं लिखा हुआ ? नहीं, की राह लंबी थी पड़ाव दूर था अभी न हार मानूँगी मैं की लिखूँगी अपना भाग्य मैं निकल पड़ी ये ठान कर कठिनाइयाँ भले राह पर मेहनत हिम्मत जोश से आगे बढूंगी, सोच ये ये सोच आगे बढ़ पड़ी मुश्किलों से लड़ पड़ी विश्वास था, अडिग रही मंज़िल पर तब हूँ अभी न हार मानना कभी भले कठिन जीवन लगे बढ़े चलो, लगे रहो बिना रुके, बिना थके

स्मृति

न जाए जो मन से ऐसी स्मृति हो तुम ईश्वर की एक अनुपम अद्वितीय कृति हो तुम साथ तुम्हारे मुझको सदा क्यों अपनापन सा लगता ख़ुशियों भरे बिताए जो पल एक सुंदर स्वप्न सा लगता करूँ मैं बातें जब तुझसे मन मेरा खिल उठता तुम्हारी हसीन मुस्कान से तन क्यों सिहर उठता लगती बोली में तुम्हारी कोयल सी मधुर मिठास बढ़ा देती है अक्सर क्यों मेरे मन की प्यास हर पल तुम्हें निहारूँ आँखों में तुम्हें बसा लूँ नज़रों से ओझल होनें न दूँ इस तरह दिल में छुपा लूँ तुम जो ख्याल रखती हो मुझको संभाल रखती हो ये तुम्हारा अपनापन ही है मन अपना विशाल रखती हो एक बार तुम्हें पाना चाहता हूँ  तुझमें डूब खो जाना चाहता हूँ तुम्हारे हृदय में एक कोना चाहता हूँ जी भर कर तुझमें खोना चाहता हूँ इसे मेरी आस कह सकती हो या कह सकती हो मेरी प्यास चाहता हूँ न जानें क्यों तुझको स्वयं से ज्यादा तुझपर विश्वास खो जाऊँ यूँ तुझमें की फिर ऊबर न पाऊँ मैं चाहता हूँ शायद तुम्हें इतना कहीं कुछ कर न जाऊँ मैं