मेरी जीत
कुछ यूँ हो गया था की
करूँ क्या सूझता था नहीं ?
मायूसी थी छाई जीवन में
क्या कुछ कर पाऊँगी कभी ?
थक हार कर, निराश हो
जीवन बिताना तय था क्या ?
क्या बैठ जाती सोच कर
भाग्य में यहीं लिखा हुआ ?
नहीं, की राह लंबी थी
पड़ाव दूर था अभी
न हार मानूँगी मैं की
लिखूँगी अपना भाग्य मैं
निकल पड़ी ये ठान कर
कठिनाइयाँ भले राह पर
मेहनत हिम्मत जोश से
आगे बढूंगी, सोच ये
ये सोच आगे बढ़ पड़ी
मुश्किलों से लड़ पड़ी
विश्वास था, अडिग रही
मंज़िल पर तब हूँ अभी
न हार मानना कभी
भले कठिन जीवन लगे
बढ़े चलो, लगे रहो
बिना रुके, बिना थके
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