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Showing posts from September, 2021

देन उनकी स्वाधीनता

वक़्त भी था ठहर गया असंतोष का वातावरण था जब राष्ट्र की स्वतंत्रता हेतु कइयों नें गोलियां खाई थीं लम्हा यादों का छोड़ गए सबको आपस में जोड़ गए आँधी ऐसी चल पड़ी चिंगारी आग थी बन गई देन उनकी स्वाधीनता कई प्रयत्नों से मिला जब शासन बहरा है रहता तोड़ दो शीशे, वक़्त कहता

ब्रजभूमि

मथुरा वृन्दावन बरसाना नंदगांव  गोकुल धाम लीला रचे जहाँ प्रभु कृष्ण ब्रजभूमि को साष्टांग प्रणाम बसते कण कण में मुरलीधर गाथा कहे यमुना बह कल कल भाव भावना यूँ मन प्रफुल्ल राधेकृष्ण में हीं चित्त हरपल मनोरम राधा-श्याम कुंड, गोवर्धन दाऊजी मंदिर, नंदभवन, निधिवन  कुसुम सरोवर, द्वारकाधीश, विश्राम घाट जन्मभूमि, बांके बिहारी, कोकिलावन ब्रजभूमि की छटा निराली आभास जैसे निकट गोपाल  डूबे कृष्णभक्ति में नर नारी अतुलनीय गोकुलधाम की बात

हिंदी

  “अ”पनें संग जोड़ औरों को “आ”गे बढ़ती रही हिंदी “इ”क्कठे कर कई बोली “ई”र्ष्या से दूर रही   “उ”दार चरित अतुल्य “ ऊ”र्जा “ए”कीकृत परंतु न “ ऐ”कपत्य “ओ”जस्विता “ औ”दार्य कारण “अं”तःप्रवाह सदा बहती रही

पिशाच

इंसान, इंसानियत पर अभिशाप घृणा शत्रु जलन रूपी पिशाच रहें इन बुराइयों से पृथक बढ़ाएं आपस में विश्वास हम सब एक मिटटी के हीं एक ही धरा पर बसते हैं न कोई यहाँ सदा ही है तो किस बात को झगड़ते हैं जब तक साँस साँसों में रहे हर हाँथ हाँथों में पिशाच वृत्ती रहे जो दूर निकले मानवता का अंकुर