पिशाच

इंसान, इंसानियत पर अभिशाप

घृणा शत्रु जलन रूपी पिशाच

रहें इन बुराइयों से पृथक

बढ़ाएं आपस में विश्वास


हम सब एक मिटटी के हीं

एक ही धरा पर बसते हैं

न कोई यहाँ सदा ही है

तो किस बात को झगड़ते हैं


जब तक साँस साँसों में

रहे हर हाँथ हाँथों में

पिशाच वृत्ती रहे जो दूर

निकले मानवता का अंकुर



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