देन उनकी स्वाधीनता

वक़्त भी था ठहर गया

असंतोष का वातावरण था

जब राष्ट्र की स्वतंत्रता हेतु

कइयों नें गोलियां खाई थीं


लम्हा यादों का छोड़ गए

सबको आपस में जोड़ गए

आँधी ऐसी चल पड़ी

चिंगारी आग थी बन गई


देन उनकी स्वाधीनता

कई प्रयत्नों से मिला

जब शासन बहरा है रहता

तोड़ दो शीशे, वक़्त कहता

Comments

Popular posts from this blog

अब जाता हूं .....

चक्रव्यूह

वो क्षण