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मित्रता

मित्रता कृष्ण और सुदामा मित्रता राम सुग्रीव समान रहे चाहे जैसा यह जीवन रखती मित्रता इसका मान सुख दुःख में सदैव मित्र खुशबू जीवन ज्यों हो इत्र मित्र हमेशा साथ निभाते संग सदैव हीं हंसते गाते साथ बचपन कल अटूट है भरा विश्वास कूट कूट मन की हर बातें कह देते मित्र जो हर पीड़ा हर लेते ये साथ रहे ऐसा हीं सदैव मित्र हीं तो धन और वैभव मित्र तो हैं जीवन का आय मित्रता तब ही सबको भाय

संगीत

कान्हा तेरे चरणों में झांझर की खन-खन मधुरिम धुन रिझाती यशोदा नंद का मन पायल की राग यह है चित्त को लुभाती जो घुंघरू खनकती  मैया को बहुत भाती पहन नूपुर प्रांगण में  चारों भ्राता खेले हैं तीनों माता के उर में संगीत को बिखेरे हैं

बारिश

टपकती बूंदें मन हर्षाएं टिप टिप बरसती जाएं क्षण में लुप्त हुई तपिश आई अवनि पर बारिश हरियाली हर ओर छाई देखो बरखा रानी आई आता, छुप जाता रवीश जब आती जाती बारिश देख लबालब नदी नहर हर्षित मनुष्य ग्राम नगर खेतों में फसलें लहराएं  मौसम बारिश का आए

समय चक्र

बचपन के काटे अल्हड़पन से युवा में जूझते समस्याओं तक चलता रहा जीवन का ये चक्र पल ख़ुशी के ग़म के पल तक हैं सिक्के के दो पहलू दोनों न कोई नदियों का किनारा संग रहते जब तक हैं दोनों है रहता जीवन में उजियारा सफ़र यूं हीं बस चलता जाए आगे यूं बढ़ हम मंज़िल पाएं चाहे उतार चढ़ाव जितने भी समय चक्र बस चलता जाए

उस पल

काश वो एक पल भी आए ए काश वो मंज़र अब आए मिल जाएं किसी मोड़ दोनों बातें जो हैं मन में कह जाएं करूंगा क्या ये सोच रहा हूं अभी तक संकोच में रहा हूं मन की बात कब तक अंदर मिलोगी तुम कर दूंगा बाहर तुमको अपने साथ बिठाकर हवाओं सम मैं उड़ा ले जाऊं विचरण करें तब नदी किनारे संग बैठ उस पल को बिताएं हर खुशियां उस पल में दे दूं थोड़े वक्त में बहुत कुछ दे दूं याद रहे वो पल जीवनपर्यंत छोटा सा पल पर न हो अंत इतना खूबसूरत वो पल हाय चुस्कियों संग एक गरम चाय तुम मुझको देखे मैं तुम्हें देखूं न तू मुझे रोके न मैं तुझे रोकूं बस वहीं पर ये वक्त थम जाए तब मैं तुझसे कुछ कह न पाऊं मेरे मन की बात रहे मन में ही बिन कहे काश समझ तू जाए मैं तुझे बगिया में लेकर जाऊं फूलों से तेरा परिचय करवाऊं बखान करूं उनसे यह सुंदरता कहूं इनके आगे पुष्प तू फीका चाहूं ये तेरी बांहों को पकड़कर लगा लूं तुझको फिर अपने कर माथे पे मीठी एक चुंबन दे जाऊं  ओंठो पर एक चुंबन लेकर आऊं और इस पल की यादों के सहारे साथ बिताए संग जो पल तुम्हारे रख लूं तब संजोकर इस पल को क्या पता पल कल हो की ना हो कल शायद रहें या की न रहें हम न जाने जाए किस पथ ये ...

नृत्य

यूं तेरा लहरों सा लहराना यूं तेरे कमर का बलखाना यूं लहराती ज़ुल्फ़ तुम्हारी नृत्य में कितनी सुंदर नारी नृत्य मंडली की शोभा तुम देख तुम्हें मैं हो जाता गुम आत्म बल अद्भुत तुम्हारा नर्तन क्रिया ने मन लुभाया चेहरे पर विचित्र मुस्कुराहट है देती मेरे हृदय पर आहट आनंदित ऐसे सदा रहो तुम तुझे छू न पाए कोई भी ग़म अठखेलियां तेरी परिचायक जीवन, नृत्य में लाभदायक लहराए यूं हरपल खुशियां निरावृत हो तुम्हारी दुनियां

तुम आई

तुम आई, रौशन हुई जिंदगी तुम आई, साथ लेकर खुशी तुम आई, पल रुक सा गया तुम आई, सब थम सा गया काश, कुछ ज्यादा पल होते काश, नहीं कोई बंधन रहता काश, मिलन कुछ ऐसा होता काश, संग केवल दोनों होते तुमको, लेकर जाता गंगा तट तुमको, गर्म सी चाय पिलाता तुमको, देखता रहता एकटक तुमको, लाता घर की चौखट साथ में, हम सब बात बताते साथ में, बैठ हंसते मुस्कुराते साथ में, ले गर्म समोसे खाते साथ में, एकदूजे में डूब जाते पर, कुछ भी ऐसा हो न सका पर, है अभी शायद वक्त बाकी पर, क्या फिर हम मिल पाएंगे पर, क्या मधुर मिलन भी होगा तुम आई, सपने जाग उठे फिर तुम आई, आई बचपन की यादें तुम आई, तुम बिल्कुल वैसी हो तुम आई, दिल में केवल तुम हो