माया

जी भर तेरा प्यार चाहता हूं
मैं हुस्न का दीदार चाहता हूं
महसूस करना चाहूं तुम्हें ही
बस यहीं एक बार चाहता हूं

सहलाना चाहूं गेसुओं को तेरे
उनकी खुशबु में डूब जाऊं मैं
एक एक लट को तेरे संवार दूं
आओ तुम्हें जी भर प्यार दूं मैं

चूमना चाहूं तुम्हारे ललाट को
जगाऊं तुम्हारे भी जज़्बात को
सच में तुम बहुत सकुचाती हो
भावनाओं को कह न पाती हो

नारी की कामना तब उभरती
जैसे हीं स्पर्श नर का है होता
रति की बनाई यह एक माया
कामदेव ने सदैव इसे निभाया

है तेरे मन का मेल मेरे मन से
क्यों रखें पृथक इसको तन से
एक जैसी हीं हमारी भावनाएं
तो क्यों नहीं हम एक हो जाएं

Comments

Popular posts from this blog

अब जाता हूं .....

चक्रव्यूह

वो क्षण