वो क्षण
जब आया था मैं तेरे शहर में
मन में मिलने की कामना थी
मगर न मिल सका मेरा दोष
मिलूं, न मिलूं यह भावना थी
रूठी थी तुम मुझसे उस वक्त
तेरी नाराज़गी सच में जायज़
और फिर आई तुम मेरे शहर
मिलन हुआ हमारा उस पहर
तुझसे मिलने को रहा मैं बेसबर
आई घड़ी जो तुमसे मिलन की
लगा जैसे कि वक्त है गया ठहर
मिलन की आस थी, वक्त पर ऐसा
लगा कि आ पाऊंगा मैं या की नहीं
आया जो मिलने को तुझसे प्रियतम
ठहर गई थी उस वक्त वो घड़ी वहीं
है तुझमें आज भी ठहराव वैसा ही
सच तुझमें आज भी बहाव वैसा ही
बदली होगी शायद तुम, न मुझे लगा
तुझको देखते ही हो गया मैं लापता
चले गए संग बरसों पुराने दौर में
यादें ताज़ा की बहुत तुम और मैं
हँसते हुए लम्हें गुजारे साथ साथ
अभी भी दोनों में वैसा ही विश्वास
उस वक्त भी देखा तुम्हारा अपनापन
तुम्हारी सौम्यता संग तेरा सलोनापन
पल बीता वो खुशनुमा तुम्हारे साथ में
लग रहा था वो था तो नहीं कोई स्वप्न
कभी था कश्ती मैं और तुम मझधार थी
किसी वक्त तुम मेरी एकतरफा प्यार थी
वह एक वक्त था वक्त कबका बीत गया
अभी वर्तमान है कबका वह अतित गया
बीता वो पल एकदूजे संग हँसते बोलते
कुछ इतिहास के खोए पन्नों को खोलते
पर लगा नहीं कि मिले थे वर्षों बाद हम
मन में घर कर गया साथ बीता जो क्षण
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