हम–तुम
लम्हें गुजारे कितनें, तेरे इंतज़ार में
डूबे रहे बस याद में, तेरे हीं प्यार में
तू आएगी, कह कर ये आई तू नहीं
न आऊंगी, यह भी कह दिया कभी
तू आई थी, बातें कई की थी हमनें
लम्हें कई मुस्कुरा संग काटी हमनें
संग चेहरे पर, खुशी की लकीर थी
मिलना हमारा ऐसे, जैसे नज़ीर थी
आना तेरा विश्वास था, एक दूजे पर
यूं हसीं सा रहे, जब तक संग सफर
किसी मोड़ पर न, अलग हों हम कभी
तकरार होना लाज़मी, रिश्ता रहे जभी
मन में कोई दुर्भावना नहीं रही कभी
हित सदैव एक दूसरे का सोचते रहे
आए वियोग के पल भी, जो ठीक थे
नाराज़गी में भी पर, पृथक न हम हुए
यकीन था, इसी यकीं ने पास ला दिया
इसी यकीं ने हरपल, एक राह था दिया
जिस राह हम बेझिझक चल रहे अभी
ऐतबार आपस का पर टूटा नहीं कभी
नहीं डिगा कभी भी, हो कोई भी घड़ी
भले कितनी मुश्किलें, थीं राह में पड़ी
था यह समर्पण मन का, सदैव हीं रहा
दूरियों में भी अपना, रिश्ता जुड़ा रहा
खुशी में एक दूसरे के, थे साथ हम
दूरी में भी सदा, बांटा है हमनें ग़म
हमराज हीं आपस में, सदा बने रहे
यह रिश्ता अपना बस, ऐसा हीं रहे
पलट के जो देखते, अपने साथ को
हैं याद आती की गई, हरेक बात वो
विश्वसनीय सदा रहे, हो वक्त कोई भी
मन की हर बातें कहे, यूं आस्था रही
नाराज़गी, उपेक्षा, क्या क्या नहीं सहे
हालातों के साथ पर, उस वक्त भी रहे
देख झटकना तेरा, सच याद आता है
आंख मटकना तेरा, वह याद आता है
वो किसी से कभी, जो बात होती थी
देखा चेहरा तेरा, तू नाराज़ लगती थी
इसलिए था हर किसी से, दूर मैं रहा
तेरे चेहरे की खुशी का, हितैषी हीं रहा
न सोचा था यूं अपनापन, होगा किसी से
यह लिखा हुआ था भाग्य में, कटेगा कैसे
हम हां कहें या की न कहें, जो है वो तो है
आते कई हैं जीवन में, कोई रह जाता कैसे
कितना भी रूठें हम मगर, ना रूठ पाए हैं
हों कितना भी टूटें हम मगर, ना टूट पाए हैं
लगा कभी ऐसे की जैसे, छूट गया हो साथ
हर वक्त पर थामा हमनें, एक दूजे का हांथ
मैंने तुमसे प्रेम का, इज़हार था किया
तूने कहा हृदय में तेरे, मैं हूं बसा हुआ
बात चली मधुर मिलन की, तय ये हुआ
यह छोड़ते हैं वक्त पर, की वक्त है बड़ा
अब वक्त वो लाएं, की वक्त बीत जाएगा
मर्जी जो तेरी मेरी, अब वो वक्त आएगा
बड़ी अजीब बात है, बड़ा विचित्र साथ
कभी आसमां, कभी जमीं, कैसे हालात
कह भी दें, अब कह भी दें, की बहुत हुआ
शर्माए तुम, सकुचाएं हम, कब तलक भला
यह बातें, देख लग रही, थोड़ी अजीब सी
ये रिश्ता भी अपना रहा, ज़रा अजीब सा
सामान्य रिश्ता अपना, था शुरुआत में
हमें क़रीब लाया था, तब के हालात ने
न सोचा था हमनें, की यूं पनपेगा नाता
हम ये मानें या न मानें, सूत्रधार विधाता
सहयोग के सूत्र से, विश्वास था पनपा
सहचर बने, संग हुआ, जुड़ाव मन का
होनी थी, जो होनी थी, था लिखा हुआ
बता इसको क्यों रोकें, तब हम भला
दास्ताँ थी जो क़रीब, सब लिख दिया
वृतांत है यहीं, अब तक के मिलन का
भविष्य जो भी हो, वहीं मंज़ूर है हमें
साथ और एतबार अपना, टूटे न कभी
रहें संग संग, जब भी जरूरत रहे
आंसु या की ख़ुशी का महुरत रहे
सदैव हम एक दूसरे के पूरक रहें
मन की बात परस्पर, बेझिझक कहें
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