उदासी
तेरे चेहरे पर विषाद क्यों है
नेत्रों में किस बात की आस
होंठ भला तेरे क्यों थमे हुए
हुआ क्या मुस्कान को आज
संभवतः किसी सोच में गुम हो
आत्मविस्मृत कहाँ पर तुम हो
अन्यथा मन में कुछ बात दबी
लगती खोई हुई हो तुम तब हीं
बिंदिया की चमक क्यों धुंधली
है ओष्ठरंजनी भी लगती फीकी
निराशा जो ये तुम्हारे चेहरे की
क्यों लगता कुछ पूछ रही तुम
ललाट पर क्यों चिंता रेखा
यूँ बहुत कम तुम्हें है देखा
करती हो तुम सब सामना
ख़ुशी तुम्हारी मेरी कामना
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