बंधन
भरा रहे खुशियों से आंगन
रहे सदा आनंदपूर्ण जीवन
रहे पृथक द्वेष से तन मन
जुड़ा रहे यूं प्रेमपूर्ण बंधन
साथ जैसे कृष्ण सुदामा
मिले हुए भले हो वर्षों
यह प्रेम परंतु था अविराम
बंधन से मिलने की आशा
चंद दिनों का डेरा वसुधा
सुख दुःख का मेला रहता
करना एक दूजे पर अर्पण
अटूट रहे यह अपना बंधन
Comments
Post a Comment