धुंध
छुप है जाती धुंध में
प्रातः की हल्की धूप
आकर्षण अलौकिक
सुदर्शन धरा का रूप
ओस की बूंदें पत्तों पे
भीनी खुशबू मन मोहे
यूं ऊषा पहर में भूमि
बादल की चादर ओढ़े
छुप यूं आता है सूरज
है ढूंढे जैसे शुभ मुहूर्त
तिमिर–प्रकाश में द्वंद
बैठ मुस्कुराता तब धुंध
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