गृहणी

गृहणी की बाहों का आलिंगन 
केवल लालसा ही नहीं होती
मिलता है विराम तन मन को
दुविधाओं को दूर ले जाती वो

हो अनुभूति जैसे स्वर्ग सी
है औषधि जो हर रोग की
विस्मृत होती सारी वेदनाएं
संगिनी लिपट बाहों में आए

सब कुछ है भूल जाता ये मन
ठहराव में है आ जाता जीवन
जैसे हो सिमट जाता हर पल
बहती भावनाएं तब अविरल

ईश्वर का दिया साथ जिसका
सदैव अटूट विश्वास जिसका
जीवन वाटिका में पुष्प तुल्य
जिसका ना होता कोई मूल्य

Comments

Popular posts from this blog

अब जाता हूं .....

चक्रव्यूह

वो क्षण