मैं पुस्तक कोई खुला

मैं पुस्तक कोई खुला
तुम बंद कोई द्वार सा
तुमने मुझे पढ़ लिया
मैं बाहर हीं खड़ा रहा

आ तुम्हारी चौखट पर
डूबा रहा इस सोंच में
सोचा अंदर आऊं पर
न आ सका संकोच में

है जान लिया तुमने मुझे
यह पढ़ लिया मैं कौन हूं
पढ़ रख दिया पृथक मुझे
इसलिए हीं तो मैं मौन हूं

किवाड़ को मैं खोलकर
आ जाऊं तुम्हें बोलकर
मर्यादा न उलंघित करूं
चला जाऊं यह सोचकर

जब पढ़ लिया, विश्वास कर
चाहे हो पल कैसा भी मगर
है चौखट तेरी, मेरी गोपुरम
है आराधना तेरी मेरा जीवन

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