अब जाता हूं .....

बस यहीं तक यह आसमान 
अब आगे कोई और जहान
एक यात्रा का पड़ाव आया
एक यात्रा का बहाव आया

कुछ तारे जगमग मैं छोड़ चला
कुछ अंधकारमय पल थे बीते
कभी था सूरज मेरे आंचल में
कभी अमावस में थे रैन बीते

पर अंबर कभी झुकने न दिया
विस्तार नभ का रुकने न दिया
आंधियां भी चलीं तूफान आए
था थामा सब अपनें दामन में

कभी अपनों ने विश्वास दिया
कभी अपनों ने न साथ दिया
कुछ पल में हर्ष का मेला था
कुछ पल थे जब अकेला था

पर नभ सा मैं विशाल रहा
हर कोई मुझको भाया था
आते थे भले बादल काले
टिकते न थे, थे बरस जाते

अंधेरों को पर टिकने न दिया
और तारों को बिकने न दिया
वो चकोर जो थे घेरे चंदा को
उन चकोरों को मिटने न दिया

अब जाता, पर इस चिंतन में
ये भी एक क्षण था जीवन में
मुझमें पर कोई बदलाव नहीं
हां, मैं जैसा हूं, वैसा हीं सही

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