घृणा
जो घृणा में जी रहा है
बस गरल हीं पी रहा है
मात्र मन में विष धरा है
पूर्ण अब उसका घड़ा है
सोच में केवल है अहंकार
व्यर्थ उसका सब चीत्कार
घृणा औरों से यूं क्यों भला
निराशाओं से जीवन भरा
वक्त की ये धार है
दो धारी तलवार है
बस में जिनके कुछ नहीं
बस घृणा हीं करते वहीं
Comments
Post a Comment