कब तक ....

वो कहती है,
हम आएंगे,
इंतजार तो कीजिए।

मेरी याद में,
खुद को ज़रा,
बेकरार तो कीजिए।

घड़ी की सुइयां,
बढ़ती हीं जा रही,
उनके आने की,
ख़बर न आ रही।

हमारी ये निगाहें,
रास्तों को देखे,
हलचल कोई हो तो,
आते जाते को देखे।

पर जिन्हें आना है,
वो आते नहीं,
वादा तो करते हैं,
पर निभाते नहीं।

और हम,
इंतजार करते रहते हैं,
दिल को,
बेकरार करते रहते हैं।

ये अदाएं हैं,
हुस्न वालो की,
कत्ल करते हैं,
वे जज्बातों की।

मुकरना शायद,
उनकी आदत सी है,
पलकें बिछाना पर,
हमनें भी छोड़ा नहीं।

कभी तो मेरा जादू,
उनपर भी छाएगा,
हां बेचैन होकर वो,
मेरी बाहों में आएगा।

ये दूरी तब,
मिट हीं जाएगी,
अभी याद हमें आती है,
कल उन्हें हमारी याद आएगी।

कब तक छिपाओगे, 
अपनें मन के जज्बातों को,
प्रेम को मेरे तरपोगे
करोगे याद मेरे इरादों को।

तुम्हारी बेचैनी तब,
तुम्हें पास लाएगी,
आकार मेरी बाहों में,
सब भूल जाओगी।

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