आंचल

वर्षों रक्तरंजित थी धरा
विलाप में थी ये अप्सरा
आतंक चारों ओर हीं था
आंसुओं से आंचल भरा

क्रूरता कितनी हीं सही
संस्कृति परंतु वहीं रही
वसुधैव कुटुंबकम् सभ्यता
जो आ गया, आकर बसा

ममता का भारत आंचल
गंगा सा परिपूत धरातल
दिया सदैव प्रेम अपनानपन
पूर्ण मधुरता तन मन जीवन

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