आत्मा

स्थूल इस शरीर में
सूक्ष्म, अटल सत्य
जीवन, मरणोपरांत
शास्वत, प्रबल सदा

जिसको संदेह है
वो भी एक देह है
जीव है तो सोचता
अस्तित्व स्वयं स्वरूप

मुझमें तुझमें आत्मा
आत्मा मैं और तुम
उपभोग शरीर का
जीर्णता में त्यागती

आत्मा प्रकाश पुंज
कर्म को समेटकर
पूर्ति इच्छाओं की
ढूंढती रहती सदा

Comments

Popular posts from this blog

अब जाता हूं .....

चक्रव्यूह

वो क्षण